खाद के संकट का वार- सरकार सात समुंदर पार: जीतू पटवारी
खाद संकट को लेकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने सरकार को घेर
यश भारत (पॉलिटिकल डेस्क) केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारें देश की खेती-किसानी पर गहरा आघात कर रही है। एक तरफ किसानों को पर्याप्त समर्थन मूल्य नहीं दिया जाता, दूसरी ओर उन्हें समय पर खाद उपलब्ध नहीं कराया जाता। साथ ही खेती की लागत इतनी बढ़ा दी गई है कि किसानों का लागत मूल्य भी नहीं निकल पा रहा है। मध्यप्रदेश के किसान कई-कई दिनों तक खाद लेने के लिए कतारों में खड़े हैं। भाजपाई सत्ता की बर्बरता के चलते पुलिस की लाठियां खा रहे हैं और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री इसका संज्ञान लेने के बजाए सात समुंदर पार सत्ता का लुफ्त उठा रहे हैं।
ये आरोप मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष जीतू पटवारी ने भोपाल के पार्टी मुख्यालय पर पत्रकार वार्ता में सरकार पर लगाए हैं। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में रबी सीजन में गेहूं, चना, मटर, सरसों, गन्ना, अलसी इत्यादि प्रमुख फसलें उत्पादित की जाती है। इनकी फसल को लेकर मध्यप्रदेश और देश में डीएपी खाद का गहरा संकट है। प्रदेश में रबी सीजन में भारत सरकार द्वारा 8 लाख मेट्रिक टन डीएपी उपलब्ध कराने की सहमति प्रदान की थी। मगर दुर्भाग्यपूर्ण है कि 20 नवंबर 2024 तक मात्र 4.57 लाख मेट्रिक टन डीएपी उपलब्ध कराई गई और अब तक प्रदेश में मात्र 2.91 लाख मेट्रिक टन डीएपी का विक्रय किया गया। डीएपी और काम्पलेक्स खाद सिर्फ बोवनी के समय ही प्रयुक्त किया जाता है। अभी अक्टूबर-नवम्बर माह बोवनी का चरम समय होता है, मगर भारत सरकार द्वारा डीएपी उपलब्ध कराये जाने के आष्वासन का आधा खाद भी उपलब्ध नहीं है।
जीतू पटवारी ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि जहां प्रदेश में यूरिया की आवश्यकता 20 लाख मेट्रिक टन की है। वहां उपलब्धता 12.70 लाख मेट्रिक टन मात्र की है और 20 नवंबर 2024 तक इसका विक्रय 7.69 लाख मेट्रिक टन मात्र किया गया है। यूरिया को रबी सीजन में कम से कम तीन बार प्रयुक्त किया जाता है। एक बोवनी के वक्त, दूसरे और तीसरी बार बोवनी के बाद। अर्थात नीचे दिये गये चार्ट से यह स्पष्ट है कि केंद्र और प्रदेष की भाजपा सरकारों ने खेती को और किसानों की आमदनी को गहरे संकट में डाल दिया है।
किसानों पर मोदी सरकार का वार-खाद की सब्सिडी तार-तार:-
1. खाद की सब्सिडी में कटौती – ‘खाद की सब्सिडी’ में 87,238 करोड़ रू. की कटौती व ‘न्यूट्रिएंट सब्सिडी’ में 41,122 करोड़ रू. की कटौती।
(प) तीन कृषि विरोधी काले कानूनों के विरोध में पैदा हुए किसान आंदोलन के एवज में भाजपा की बदला लेने की मंशा के चलते पिछले 2 साल में ही खाद की सब्सिडी में भयंकर कटौती की गई।
साल खाद पर सब्सिडी
2022-23 2,51,340 करोड़ रू.
2023-24 (त्मअपेमक) 1,88,902 करोड़ रू.
2024-25 1,64,102 करोड़ रू.
यानी 2 साल में सब्सिडी काटी = 87,238 करोड़ रू.
(पप) ‘न्यूट्रिएंट सब्सिडी (क्।च्ध्छच्ज्ञध्डव्च्)’ भी काट दी गई।
साल न्यूट्रिएंट सब्सिडी
2022-23 86,122 करोड़ रू.
2023-24 60,300 करोड़ रू.
2024-25 45,000 करोड़ रू.
यानी 2 साल में ‘‘न्यूट्रिएंट सब्सिडी’’ काटी = 41,122 करोड़ रू.।
2. साल 2024-25 में स्टॉक में 14 लाख टन की कमी।
01 अक्टूबर, 2023 को क्।च् का स्टॉक था = 30 लाख टन।
01 अक्टूबर 2024 को क्।च् का स्टॉक था = 16 लाख टन।
यानी रबी 2024 की शुरुआत में क्।च् का स्टॉक 14 लाख टन कम था। इसकी पूरी जानकारी भारत सरकार को थी। पर इसके बावजूद भी अगस्त-सितंबर में क्।च् आयात कर यह स्टॉक पूरा नहीं किया गया। किसान विरोधी षडयंत्र साफ है।
सोयाबीन किसानों से सौतेला व्यवहार:
श्री पटवारी ने सोयाबीन की फसल लगाने वाले किसानों के साथ हो रहे सौतेले व्यवहार को लेकर एक बड़ा खुलासा करते हुये बताया कि मध्यप्रदेष में लगभग 52 लाख हेक्टेयर भूमि में सोयाबीन की बुवाई हुई है और 55 से 60 लाख टन मध्यप्रदेष में सोयाबीन उत्पादित हुआ है। सोयाबीन किसानों को फसलों के दाम लागत मूल्य जितने भी नहीं पा रहे थे। जिसके चलते देष के कृषि मंत्री और प्रदेष के तत्कालीन मुख्यमंत्री षिवराजसिंह चौहान ने प्राईस सपोर्ट स्कीम पर सोयाबीन को समर्थन मूल्य 4892 रूपये प्रति क्विंटल खरीदने का किसानों को आष्वासन दिया था। एक चौकाने वाला खुलासा हुआ है कि राज्य सरकार ने खरीफ 2024-25 सीजन के लिए 10 सितम्बर 2024 को 27.34 लाख मेट्रिक टन सोयाबीन खरीदने का अनुरोध किया था। मगर प्रदेष के साथ सौतेला व्यवहार करते हुये मात्र 13,68,045 मेट्रिक टन सोयाबीन खरीदने की अनुमति ही केंद्र द्वारा प्रदान की गई। उसमें से भी 21 नवंबर 2024 तक मात्र 56768.85 मेट्रिक टन सोयाबीन 25 अक्टूबर 2024 से खरीदा गया।
देश के प्रधानमंत्री महाराष्ट्र की चुनावी सभाओं में यह कह चुके हैं कि राज्य में सरकार बनने के बाद किसानों को सोयाबीन का समर्थन मूल्य 6000 रूपये दिया जायेगा। जीतू पटवारी ने प्रधानमंत्री से सवाल किया है कि फिर मध्यप्रदेश के किसानों के साथ यह सौतेला व्यवहार क्यों किया जा रहा है।