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17 से शुभ संयोग से शुरू हो रहे पितृपक्षः श्राद्ध , पिंडदान और तर्पण से क्या होता है… पढ़े… पूरी खबर

 

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ज्योतिष आचार्य पंडित लोकेश व्यास ने बताया की श्राद्धकर्ता को क्रोध कलह जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए श्राद्ध में पवित्रता का बहुत महत्व है श्राद्ध में वाक्य और कार्य की शुद्धता बहुत जरूरी है और उसे बहुत सावधानी से करना चाहिए श्राद्ध में सात्विक अन्न फलों का प्रयोग करने से पितरों को सबसे अधिक तृप्ति मिलती है तिल जो चावल गेहूं दूध दूध से बनी सभी पदार्थ चीनी कपूर बेल वाला अंगूर कटहल अनार अखरोट नारियल खजूर जामुन परवल मखाना आदि अच्छे माने जाते हैं जबकि बेसन चना सत्तू कला जीरा खीरा लौकी पेठा सरसों काला नमक और कोई भी बासी गला सड़क कच्चा व पवित्र फल और अन्य श्राद्ध में प्रयोग नहीं करना चाहिए श्राद्ध कर्म में तेज गंध वाले पुष्प केवड़ा बेलपत्र कनेर लाल काले रंग के पुष्प नहीं प्रयोग करने चाहिए श्राद्ध में अधिक ब्राह्मणों को निमंत्रण भी नहीं देना चाहिए श्राद्ध में एक या तीन ब्राह्मण पर्याप्त होते हैं क्योंकि श्रद्धा उपभोक्ता का संतुष्ट होना सबसे अधिक जरूरी होता है ज्यादा ब्राह्मणों को नियंत्रण देने पर यदि उनके आकार आदर सत्कार में कोई कमी रह गई तो भी पितृ अतृप्त रहते हैं ब्रह्मा जी ने पितरों को अपराह्न काल दिया है श्राद्ध में निमंत्रित ब्राह्मण को आदर्श बैठक पर धोना चाहिए और श्राद्धकर्ता को हाथ में पवित्री कुशल से बने अंगूठी धारण करना चाहिए यदि पत्नी रजस्वला है तो ब्राह्मण को केवल दक्षिणा देकर श्राद्ध कर्म करना करें भोजन करते समय ब्राह्मणों से भोजन कैसा बना है यह नहीं पूछना चाहिए इससे पिता अतृप्त होकर चले जाते हैं श्राद्ध में भोजन करने व कराने वाले को मौन रहना चाहिए श्राद्ध कर्म भोजन करने के लिए चांदी तांबे और कांसे के बर्तन उत्तम माने जाते हैं इन बर्तनों के भाव में पत्रों में भोजन करना ज्यादा उचित होता है लेकिन केले के पत्तों पर साथ भोजन नहीं करना चाहिए श्रद्धा की रात्रि में यजमान ब्राह्मण दोनों को ब्रह्मचारी रहना चाहिए श्राद्ध कर्म में रोगी धूर्त कर नास्तिक मूर्ख जारी कुश्ती सीखने वाले मुर्दा जलने वाले ब्राह्मणों को साथ भोजन के लिए नहीं बुलाना चाहिए

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