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मरने से पहले नहीं लिया गया मृत्युकालीन बयान — पुलिस की लापरवाही पर अदालत सख्त, आरोपी पति को मिली जमानत

आत्महत्या के मामले में पुलिस की गंभीर चूक पर माननीय अदालत ने नाराजगी जताई। अस्पताल की रिपोर्ट में मृतिका के बयान देने में सक्षम होने की पुष्टि होने के बावजूद बयान दर्ज नहीं किए गए। अदालत ने पुलिस से जवाब मांगा और आरोपी को राहत दी।

जबलपुर। रांझी निवासी आकांक्षा तिवारी आत्महत्या प्रकरण में पुलिस की गंभीर लापरवाही उजागर हुई है। माननीय अदालत ने पाया कि मृतिका इलाज के दौरान दो दिन तक होश में थी और बयान देने की स्थिति में थी। इसके बावजूद पुलिस ने उसका मृत्यु पूर्व कथन दर्ज नहीं किया। अदालत ने इसे गंभीर लापरवाही मानते हुए आरोपी पति को जमानत का लाभ दिया।

मामले की शुरुआत

दिनांक 31 जुलाई 2025 को आकांक्षा तिवारी ने ज़हर खाकर आत्महत्या का प्रयास किया था। पति अशोक तिवारी ने उन्हें इलाज के लिए जिला अस्पताल विक्टोरिया जबलपुर में भर्ती कराया। इलाज के दौरान 2 अगस्त 2025 को आकांक्षा की मौत हो गई।

करीब एक माह बाद 11 सितंबर 2025 को पुलिस ने मृतका के मायके पक्ष के बयान के आधार पर पति अशोक तिवारी के खिलाफ Bharatiya Nyaya Sanhita की धारा 108 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज कर उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया।

अदालत में उठी पुलिस की लापरवाही

आरोपी पक्ष की ओर से अधिवक्ता मुकुन्द पांडे और श्रवण पांडे ने तृतीय अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के समक्ष तर्क रखा कि आकांक्षा इलाज के दौरान दो दिन तक जीवित और होश में थी। इसके बावजूद पुलिस ने न तो मृत्यु पूर्व बयान दर्ज किया और न ही तत्काल परिजनों से पूछताछ की।

उन्होंने यह भी बताया कि शादी को 14 वर्ष बीत चुके थे और मृतका ने अब तक कभी कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई थी। ऐसे में बिना मृत्यु पूर्व कथन के मामला दर्ज करना जांच में गंभीर कमी को दर्शाता है।

अस्पताल की रिपोर्ट से खुला मामला

अदालत ने 9 अक्टूबर 2025 को पुलिस को जिला चिकित्सालय विक्टोरिया और नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज की इलाज रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए।

अस्पताल की रिपोर्ट और इलाज विवरण में मृतिका के हस्ताक्षर पाए गए, जिससे स्पष्ट हुआ कि वह बयान देने की स्थिति में थी। इसके बावजूद पुलिस ने बयान दर्ज नहीं किए और परिजनों से भी तत्काल पूछताछ नहीं की।

पुलिस पर अदालत की नाराजगी — आरोपी को राहत

माननीय अदालत ने पुलिस की इस गंभीर लापरवाही पर नाराजगी व्यक्त की। अदालत ने कहा कि साक्ष्य अधिनियम के अनुसार मृत्यु पूर्व कथन जांच में बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसके अभाव में मामला कमजोर हो जाता है। अदालत ने आरोपी पति अशोक तिवारी को जमानत दी और पुलिस से रिपोर्ट पर स्पष्टीकरण मांगा।

लगातार तीन दिन चली सुनवाई

इस मामले में अदालत में लगातार तीन दिन तक सुनवाई चली। अदालत ने माना कि पुलिस की भूमिका में गंभीर लापरवाही रही है और जांच की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी रही। अब पुलिस को अदालत के समक्ष विस्तृत रिपोर्ट पेश करनी होगी।

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