जबलपुरमध्य प्रदेशराज्य

सिंडिकेट बैंक को मैनेजर और असिस्टेंट मैनेजर लगाया 20 लाख का चूनाः ईडब्ल्यू की जांच में खुलासा

प्लाट गिरवी रखने के आधार पर आवेदक को दिया लोन लेकिन दस्तावेज तक जमा नहीं कराए

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जबलपुर, यशभारत। सिंडिकेट बैंक के मैनेजर और असिस्टेंट मैनेजर अपनी ही बैंक को 20 लाख रूपए का चूना लगाया है। दरअसल एक आवेदक से सांठ-गांठ कर उसे 20 लाख का लोन इस शर्त में दिया था कि वह प्लाट बैंक में गिरवी रखेगा लेकिन बैंक के दोनों जिम्मेदार अधिकारियों ने आवेदक से प्लाट गिरवी क्या उसके दस्तावेज तक चैक नहीं किए। इस पूरे प्रकरण का खुलासा उस वक्त हुआ जब ईओडब्ल्यू ने मामले की जांच की। पूरा मामला साल 2016 का है।

ईओडब्ल्यू एसपी देवेंद्र सिंह राजपूत ने बताया कि सिंडीकेट बैंक शाखा भरवेली बालाघाट से आवास लोन नियमों को दरकिनार कर स्वीकृत करने और आरोपी द्वारा पैसे न लौटाने को लेकर शिकायत मिली थी। इस मामले में पांच आरोपियों वार्ड नंबर 3 निवासी मॉयल कॉलोनी भरवेली निवासी आरिफ हुसैन, उसकी पत्नी समीमुननिशा उर्फ शमीभरन निशा, प्लाट मालकिन भटेरा निवासी समीना बेगम, तत्कालीन सिंडीकेट बैंक प्रबंधक श्रीधर एन डेकाटे और सहायक प्रबंधक लखिंद्र मंडी के खिलाफ धोखाधड़ी, साजिश रचने और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम का प्रकरण दर्ज किया गया है। मामले की जांच ईओडब्ल्यू निरीक्षक मुकेश खम्परिया कर रहे हैं।

ये है पूरा मामला

सिंडीकेट बैंक शाखा भरवेली बालाघाट में वार्ड नंबर 3 निवासी मॉयल कॉलोनी भरवेली निवासी आरिफ हुसैन, उसकी पत्नी समीमुननिशा उर्फ शमीभरन निशा ने 12 जनवरी 2016 को 20 लाख रुपए आवास ऋण का आवेदन लगाया था। बैंक ने 15 जनवरी 2016 को ऋण स्वीकृत कर दिया।

प्लाट खरीदने का अनुबंध पेश किया था

बैंक ने अलग-अलग तारीखो में 12 लाख 60 हजार 137 रुपए आरिफ के खाते में ट्रांसफर किए। आरोपी ने लोन पास कराने के लिए भटेरा चोकी निवासी समीना बेगम से उनकी भटेरा चौकी स्थित प्लाट 9 लाख 50 हजार रुपए में खरीदने का अनुबंध पेश किया था। पर समीना बेगम से मिलीभगत कर आरोपी ने इस राशि का उपयोग कर लिया।

नियमों को ताक पर रखकर लोन स्वीकृत किया

बैंक के नियमानुसार इस प्लाट को क्रय कर उसे बैंक में बंधक रखवाना था। पर आरोपियों ने न तो प्लाट खरीदा और न ही बंधक रखवाया। बैंक से लिए गए लोन की राशि भी नहीं लौटाए। 30 सितंबर 2020 तक बैंक की रकम 18 लाख 65 हजार 154 रुपए हो चुकी है। जांच में ये भी तथ्य सामने आए कि तत्कालीन शाखा प्रबंधक श्रीधर एन डेकाटे और लोन स्वीकृत करने वाले सहायक प्रबंधक लखिनंद्र मंडी ने आरोपियों के केवाईसी दस्तावेज प्राप्त ही नहीं किए थे।

भौतिक सत्यापन किए बैगर लोन जारी कर दिए

बैंक अधिकारियों ने आरोपियों से अंडर टेकिंग लेटर भी प्राप्त नहीं किए थे। लोन की राशि के उपयोग संबंधी जांच भी नहीं किए थे। आरोपी ने प्लाट लिया की नहीं, बिना इसकी जांच किए लोन की राशि जारी कर दी गई। जबकि आरोपियों ने पूरी राशि ही नकद निकाल ली। बैंक अधिकारियों के संज्ञान में ये तथ्य आ गया था, बावजूद उन्होंने लोन की तत्काल वसूली के प्रयास नहीं किए।

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