कटनीमध्य प्रदेश

शहर जस का तस, नेताओं का हुआ विकास

25 साल हो गए जिले का दर्जा हासिल हुई, राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में कटनी की झलक अब भी कस्बाई

कटनी ( आशीष सोनी )। शहर कटनी को 25 मई 1998 को जिले का दर्जा हासिल हुआ था, इस लिहाज से 25 बरस बीत चुके हैं। किसी भी शहर की तकदीर और तस्वीर बदलने के लिए इतना वक्त काफी होता है लेकिन कटनी की हालत आज भी किसी कस्बे से ज्यादा नही। जनता की कमजोरियों को बेहतर तरीके से भांपकर यहां के नेताओं ने सत्ता के पदों पर कब्जा जमाया और अफसरों के गठजोड़ के साथ इलाके के विकास की बजाय अपने विकास पर ज्यादा ध्यान दिया। लगभग तीन दशक की यात्रा में शहर को चंद आड़े-तिरछे पुल-पुलियों, कुछ सरकारी भवन, बेतरतीब सड़कों के अतिरिक्त कुछ हासिल नही हुआ। विकास के नाम पर उद्योगपतियों ने अपने खर्चे पर मुनाफे के संस्थान जरूर खोले लेकिन सरकारी उपलब्धियों के नाम पर इसे हमेशा ठगा गया। यही वजह है कि 25 बरस में भी कटनी जहां का तहां है। अब तो इस शहर से पैसे कमाकर बड़े व्यापारी दूसरे शहरों में बसने की तैयारी करते जा रहे हैं। महानगर स्तर की सुविधाएं शायद यहां के वाशिंदों को कभी नसीब नही हो पाएंगी।images 28

यशभारत से बातचीत में लोग कहते हैं कि शिक्षा और पर्यटन के क्षेत्र में कटनी 25 वर्ष में एक इंच आगे नही बढ़ पाया। सरकारी स्कूलों की हालत बद से बदतर होती जा रही है। हर साल इनके उन्नयन के लिए लाखों का बजट निकलता है लेकिन न तो शिक्षा के मंदिरों की हालत सुधारी जा सकी और न ही शिक्षा के स्तर में कोई बदलाव आया। इस बरस कलेक्टर अवि प्रसाद ने व्यक्तिगत रुचि लेकर प्राचार्यों को बोर्ड कक्षाओं के परीक्षा परिणामों में सुधार के लिए आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिए जिसका कुछ असर सामने आया भी लेकिन इन स्कूलों में परमानेंट सुधार के लिए उपाय खोजने होंगे। उद्योग व रोजगार के क्षेत्र में कटनी का विकास जैसे ठहर सा गया है। बताते हैं कि 25 वर्ष पूर्व 400 दाल मिल , राइस मिल व चूना उद्योग की साख थी। कटनी का नाम पूरे प्रदेश में था किंतु आज 50 से कम मिलें ही बची है। सरकार के स्तर पर सुविधाओं की कमी के चलते उद्योग लगातार बंद होते चले जा रहे हैं। अब तो कटनी के साथ जुड़ी रही लाइम सिटी वाली प्रतिष्ठा भी बीते जमाने की बात हो गई।

कुछ सालों में जिले में खनन उद्योग बढ़ा। डोलोमाइट, मार्बल, बाकसाइट, रेत, कॉपर, लौह अयस्क जैसे तमाम संसाधन प्रचुर मात्रा में खोदे गए और खनन कारोबारियों ने मुनाफा कमाया। खनन व खनिज से जुड़े उद्योगों को कटनी में लगाकर, कटनी के युवाओं को रोजगार देने की कोई सोच कटनी के नेताओ ने नहीं दिखाई वरना आज मार्बल राजस्थान न जाता, यही कटनी में प्लांट लगते। आयरन ओर बाहर न जाता, सेल बीएचईएल जैसा बड़े प्लांट कटनी में ही लगते और कटनी के हज़ारों युवाओं को रोजगार मिलता। लोग कहते हैं कि जो सीमेंट प्लांट सतना व मैहर में खुल रहे है, वे कटनी से रॉ मैटेरियल क्यों ले जा रहे हैं? वेलस्पन जैसे समूह का आखिर कटनी से मोहभंग क्यों हो गया। यह प्लांट हजारों लोगों को लाभ दे सकता था? ऐसे कई सवाल है।

◆ केंद्र के संस्थान भी पिछड़ रहे

रेलवे के क्षेत्र में कटनी बहुत समृद्ध था। डीजल और लोको शेड की वजह से इसकी पहचान देश के राष्ट्रीय मानचित्र पर थी लेकिन पिछले कुछ सालों में बड़ी उपलब्धियां इस शहर से छिनती जा रही हैं। कटनी को रेल जोन बनाने की बात जरूर सामने आई लेकिन नेताओं की कमजोरी के चलते जोन ऑफिस भी जबलपुर चला गया। पिछले कुछ सालों में एनकेजे का डीजल डिपो बन्द हो गया । रेलवे ने यहांअपना स्टाफ लगातार कम किया। यही हाल ऑर्डिनेंस फैक्टरी के साथ भी है। निजी हाथों में जाने के बाद कटनी को कोई महत्वपूर्ण स्थान ही नही मिला।

◆ नकली माल के निर्माण और अपराधों में मिली ख्याति

उपलब्धियों से हटकर स्मैक, गांजे का नशा , बड़े जुएं के फड़, आईपीएल के अंतरराष्ट्रीय सट्टे , नकली माल बनाने, व आपराधिक गतिविधियों में कटनी ने 25 वर्ष में ख्याति ज़रूर प्राप्त की। 25 वर्ष के विकास के नाम पर कटनी कचहरी को 9 किलोमीटर दूर फेंककर जिले की 4 तहसीलों मे कोर्ट बन गए। इसके अलावा तीन ब्रिज बने। पहला कटनी नदी ब्रिज जो 16 साल में बनने वाला दुनिया का सबसे छोटा केवल 90 मीटर का ब्रिज होने का कलंक रखता है। दूसरा मिशन चौक का नागिन ब्रिज जो मात्र 23 फीट चौड़ा बनाया गया और इसमे 4 अंधे मोड़ों पर आए दिन दुर्घटना हो रहीं हैं। इसके अलावा स्वास्थ्य सेवाओं की हालत भी बदतर है। जिला अस्पताल में आधे डॉक्टर के पद खाली है, 25 वर्षों की उपलब्धि ये है। पिछले 25 वर्षों में कटनी नगर के आधे शासकीय स्कूल बन्द हो गए। कोई नया केंद्रीय विद्यालय, सैनिक स्कूल आदि नही बन सका। नागरिक कहते हैं कि इन 25 वर्षों में कटनी नगर इतना लवारिसपन का शिकार हुआ कि सड़को की चौड़ाई 80 फीट होने के बावजूद एक एम्बुलेंस तक नही निकल पाती, क्योंकि दुकानें शटर के अंदर कम, सड़को पर ज्यादा फैलाई जाती है। अव्यवस्था इतनी बढ़ गई, कटनी जिले में न कोई हॉकर्स ज़ोन बना, न मल्टीलेवल पार्किंग बनी। अव्यवस्था को खुलेआम छूट देते हुए 5 रु की पर्ची कटवा कर कही भी सड़क पर कोई भी बैठ कर व्यापार करता है। इसीलिए दमोह, सागर, पथरिया, जैसे दूसरे जिलों से 4 घंटे सफर करके कटनी जिले में सब्जी बेचने लोग आते है क्योकि ऐसी अव्यवस्था व छूट किसी अन्य जिला मुख्यालय में नहीं है।

कटनी रेल्वे के 3 टुकड़े करके, कमजोर किया गया, और जो नए स्टेशन बनाये गए उनमें कोई सुविधाएं नही दी गई। सड़क चौड़ीकरण के नाम पर, कमानिया गेट व अन्य ऐतिहासिक महत्व के स्थानों को तोड़ दिया गया। जो बचे है, उन्हें भी कोई ध्यान नही दिया जा रहा। चाहे बात झंड़ाबाज़ार की हो, रुई बाजार की, गांधी द्वार की या घंटाघर की।

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