ये 10 बड़ी समस्याएं, जिनसे रोज शहर का सामना
शहरवासियों को इनसे निजात दिलाने में सरकारी तंत्र अभी तक फेल

■ आशीष सोनी / आशीष रैकवार एवं टीम
कटनी। शहरवासियों के सामने आज भी दस बड़ी समस्याएं विकराल रूप धारण किए खड़ी हैं। लाख कोशिश के बावजूद जनप्रतिनिधि और अधिकारी इन समस्याओं से लोगों को निजात दिलाने में अभी तक पूरी तरह सफल नही हो सके हैं। फाइलों पर योजनाएं तो बनती जा रहीं हैं पर अभी तक इन समस्याओं के निवारण के लिए ठोस प्रयास नहीं हो पाने से धरातल पर कुछ नहीं बदल रहा। कुछ मामलों में कोशिशें हुई भी तो अधूरी। अब तो शहरवासियों को भी लगने लगा है कि इन समस्याओं का शायद अभी कोई अंत नहीं है। उन्हें इंतजार ऐसे अफसरों का है जो योजनाओं को फाइलों से निकालकर धरातल पर कुछ करें और उन्हें इन समस्याओं से निजात दिलाएं। दशकों से समस्याओं के किस्से नासूर बन चुके हैं। चुनावों में बड़ी बड़ी बातें होती हैं लेकिन जीतने के बाद शायद किसी को पलट के देखने की फुरसत नही रहती।
■ नम्बर 1 : बुनियादी सुविधाएं भी खस्ताहाल
शहर के भीतर और सीमा क्षेत्र में अनेक कॉलोनियां हैं। अवैध कालोनियों को वैध कराने की लड़ाई लंबे समय से चल रही थी जिसको देखते हुए प्रदेश सरकार ने विधानसभा चुनाव से पहले सभी कालोनियों को निर्धारित प्रक्रिया के तहत वैध करने की कार्यवाही शुरू की थी। आज भी इन कालोनियों में हालात बदतर हैं। पहले अवैध के बहाने कुछ नही हो सका अब प्रकिया में सबकुछ लटका है। चुनाव के पहले डन कालोनी और बालाजी नगर के लोगों ने जनसहयोग से सड़क बनाकर समस्या को हल करने की दिशा में रास्ता खोजा लेकिन दर्जनों कालोनी ऐसी हैं जहां आज भी मूलभूत सुविधाओं की मोहताजी के बीच लोग रोज परेशान हो रहे हैं। शहर की 50 फीसदी आबाद होने के बावजूद इन कॉलोनियों में बुनियादी सुविधाओं की बेहद कमी है। न तो इन कॉलोनियों में सड़कें हैं न ही पानी निकासी की कोई व्यवस्था। बरसाती दिनों में इन कॉलोनियों की कच्ची सड़कें दलदल में तब्दील हो जाती हैं। यहां से निकलना बड़ी मुसीबत होता है।
■ नम्बर 2 : बाइपास बना फिर भी जानें जा रहीं
उम्मीद थी कि शहर में बाइपास बनने से शहर के भीतर की ट्रैफिक व्यवस्था सुधरेगी, मगर ऐसा नहीं हुआ। रिंग रोड का सपना अब भी अधूरा है। रेत, गिट्टी और अन्य सामग्री से लोड बड़े वाहन अब भी शहर की छाती पर मूंग दल रहे हैं। पैसे लेकर इन्हें शहर से निकलने की इजाजत कौन देता है, यह स्थिति किसी से छिपी नही है। पहले खिरहनी फाटक और बाद में मिशन चौक पर ब्रिज बन जाने के बावजूद समस्या का कोई निदान नही निकला। ब्रिज से ओव्हरलोड वाहन धड़ल्ले से गुजरते हैं। शहर के भीतर अब भी मुख्य सड़कों पर जाम की स्थिति है। दिन में हैवी ट्रक व ओवर लोड वाहन शहर के अंदर से जा रहे हैं। इन पर ट्रैफिक पुलिस कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। हादसों में जान गंवाने वालों की संख्या में भी कोई कमी नहीं आई है।
■ नम्बर 3 : प्रदूषण से विस्तार लेती बीमारियां
शहर में प्रदूषण तेजी से विस्तार ले रहा है। शहर में मेटल व प्लाइवुड के साथ फ़ूड प्रोडक्ट और मिलों की छोटी-बड़ी सैकड़ों इकाइयां हैं। छोटे और मध्यम अनेक उद्योग हैं। औद्योगिक नगरी होने के कारण यहां रोज प्रदूषण बढ़ रहा है। इसी वजह से लोग बीमारियों का भी शिकार हो रहे हैं। वायु के साथ जल प्रदूषण की समस्या भी बढ़ रही है। औद्योगिक इकाइयों का जहरीला पानी नदी में भी मिल रहा है।
■ नम्बर 4 : शहर में कानून व्यवस्था पूरी तरह लचर
लचर कानून व्यवस्था से शहर असुरक्षित हो रहा है। खासतौर पर यहां महिलाएं जुल्म का शिकार हो रही हैं। हत्या, लूट, चोरी, स्नेचिंग व धोखाधड़ी जैसी वारदातें लगातार बढ़ रहीं हैं। अवैध शराब विक्रय के साथ जुआ, सट्टा, सूदखोरी, क्रिकेट सट्टा और मादक पदार्थों की बिक्री में कटनी शहर खासा बदनाम हो चुका है। गांजे और स्मैक के गोरखधंधे ने खाकी वर्दी पर भी सवाल खड़े किए हैं। वारदातों को रोकने के लिए कोई ठोस नीति भी पुलिस बनाने में पूरी तरह फेल रही। पिछले एक साल में अनेक ऐसे मामले सामने आए जिनसे शहर की आपराधिक पहचान स्थापित हुई।
■ नम्बर 5 : हर एरिया में टूटी सड़कें टूटी पड़ी हैं
शहर की टूटी सड़कें भी बड़ी मुसीबत बन रही हैं। चांडक चौक से घण्टाघर जाने वाला मार्ग कितनी कवायद के बाद बन रहा है। कब तक पूरा होगा, अभी यह पता नही। सिविल लाइन होते हुए गायत्रीं नगर से एनकेजे जाने वाले मार्ग पर कभी मिट्टी तो कभी तारकोल वाली गिट्टी से डलवाई जा रही है। लेकिन वाहनों के दबाव में दो दिन बाद फिर से ये उखड़ जाती हैं। मुड़वारा स्टेशन से मिशन चौक सड़क की हालत बेहद खस्ता है। कहा जा रहा है कि ब्रिज बन जाने के बाद इसे रेलवे ही बनाएगा, क्योंकि उसी के हिस्से की सड़क है। झंडाबाजार से आजाद चौक जुलूस मार्ग भी अब रिपेयरिंग मांग रहा है। इसके अलावा उपनगरीय माधवनगर और एनकेजे कि सड़कों की हालत भी खराब है। उपमार्गों में भी सुधार की दरकार है।
■ नम्बर 6 : अवैध खनन और ओवरलोडिंग होना
अवैध खनन व ओवरलोडिंग भी जिले में एक गंभीर समस्या बन गई है। प्रशासन की ओर से दोनों समस्याओं के समाधान के लिए कभी ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई है। शहर से लगे इलाकों में हर तरफ लगातार अवैध खनन और अवैध परिवहन के मामले सामने आ रहे हैं। प्रशासन की धरपकड़ भी जारी है लेकिन राजनीति के स्तर पर ऐसी आवाजों को दबाया जा रहा है। खनन माफिया इतना ताकतवर है कि जो उसका विरोध करता है उसके खिलाफ ही केस दर्ज करा दिया जाता है।
■ नम्बर 7 : शहर में स्वास्थ्य सेवाएं भी लचर हैं
शहर के जिला अस्पताल को करोड़ों के बजट से सुविधाओं से लैस करने के प्रयास दशकों से होते आये हैं लेकिन आज भी यहां न तो पर्याप्त चिकित्सक हैं न ही सुविधाएं। चिकित्सकों के आधे से ज्यादा पद खाली पड़ें हैं। अस्पताल में एमआरआई की सुविधा नहीं है। सिटी स्कैन के लिए प्रथक से प्रशिक्षित डॉक्टर की मौजूदगी नही रहती। प्राइवेट अस्पतालों में ही लोगों को महंगा उपचार लेने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है। ठोस व्यवस्था न होने से मौसमी बुखार व डेंगू से हर साल लोग दम तोड़ रहे हैं। इस अस्पताल में कटनी के अलावा आसपास के जिलों से भी मरीज आते हैं। हर समय मरीजों की भीड़ रहती है।
■ नम्बर 8 : करोड़ों खर्च फिर भी सफाई बेहाल
शहर की सफाई पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। फिर भी व्यवस्था से हर नागरिक दुखी है। प्रतिदिन शहर से कई टन कूड़ा निकलता है। सफाई के लिए दोहरी व्यवस्था नगर निगम ने लागू कर रखी है। नगर निगम की सफाई सेना तो लाखों रुपये प्रतिमाह पगार ले ही रही है , कई सालों से एमएसडब्ल्यू को ठेका देकर रखा गया है। इसके बावजूद कचरे का सही से उठाव नहीं हो पा रहा। न तो कूड़ा उठ पा रहा है न ही नाले नालियों की सफाई हो रही है। अव्यवस्थित सफाई की वजह से स्वच्छता सर्वेक्षण में भी कटनी को को कोई खास रैंकिंग नही मिल सकी। उल्टे एमएसडब्ल्यू पर आए दिन भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहते हैं।
■ नम्बर 9 : शहर की अव्यवस्थित ट्रांसपोर्ट सेवा
अव्यवस्थित ट्रांसपोर्ट सेवा भी शहर की एक गंभीर समस्या है। माल से लदी ट्रॉलियां व सड़क किनारे खड़े ट्रक बड़ी मुसीबत बन रहे हैं। शहर के भीतर लोडिंग अनलोडिंग की समस्या से आज तलक निजात नही मिल सकती। यातायात पुलिस के लिए यह कमाई का जरिया बनी हुई है। घण्टाघर, चांडक चौक मार्ग, बस स्टैंड से चाक, बरगवां और हीरागंज, कचहरी चौक से सिविल लाइन रोड पर लोडिंग अनलोडिंग देखी जा सकती है। सड़क किनारे खड़ी ट्रैक्टर-ट्रॉलियां व ट्रकों के कारण लोगों को रास्ता नहीं मिलता। इनसे टकराकर या फिर इनकी चपेट में हर साल दर्जनों लोग दुर्घटनाओं का शिकार हो जाते है। कहने के लिए तो ट्रांसपोर्ट नगर बनाया जा रहा है लेकिन यह योजना भी किसी सफेद हाथी से कम नही। पीढियां गुजर गई लेकिन ट्रांसपोर्ट नगर में ट्रांसपोर्टर्स शिफ्ट नही हो पाए।
■ नम्बर 10: पेजयल संकट हर साल की रामकहानी
कटनी में पेयजल संकट की रामकहानी पुरानी है। हर साल पानी के नाम पर करोड़ों रुपये पानी मे बह जाते हैं लेकिन सार कुछ नही निकलता। ग्रीष्म ऋतु में हर बरस शहर के अनेक इलाकों में पानी के लिए हायतौबा मचती है। बस्तियों में पानी फसाद की जड़ बनता है। टैंकरों से पानी पहुंचाने के बावजूद अनेक इलाके प्यासे रह जाते हैं। यह विडंबना है कि आज भी शहर को नगर निगम के जल शोधन संयंत्र के भरोसे दो वक्त का पानी नही मिल पा रहा। सप्लाई एक ही टाइम होती है वो भी आधे शहर में। बाकी के इलाके तो ट्यूबवेलों पर निर्भर हैं। हर बार गर्मी में कटाए घाट का जलस्तर नीचे आते ही नगर निगम और प्रशासन के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच जाती है। इस बार कलेक्टर की पहल पर माई नदी के पानी को स्टोर कर उपयोग में लाने की योजना बन रही है।