यश भारत विशेष : सड़क और पुल का अभाव, जान जोखिम में डालकर नदी पार कर रहे बच्चे : बारिश के तीन महीने स्कूल नहीं जा पाते छात्र, बुनियादी सुविधाओं का अभाव बना बच्चों की शिक्षा में बाधा
मंडला lआजादी के 75 साल बाद भी मंडला जिले के नारायणगंज क्षेत्र का बोरिया गांव मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। इस गांव में न तो सड़क है और न ही नदी पर पुल, जिसके कारण ग्रामीणों और विशेष रूप से स्कूली छात्रों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। हर साल मानसून के मौसम में जब नदी में पानी बढ़ जाता है, तो बच्चों को जान जोखिम में डालकर पढ़ाई के लिए नदी पार करने को मजबूर होना पड़ता है। इस समस्या के चलते स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या में लगातार कमी आ रही है।
ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने स्थानीय जनप्रतिनिधियों और शासन-प्रशासन से कई बार लिखित और मौखिक आवेदन-निवेदन किए हैं, लेकिन आज तक किसी भी अधिकारी या जनप्रतिनिधि ने उनकी समस्या को गंभीरता से नहीं लिया। उनकी लगातार उपेक्षा की जा रही है। जानकारी अनुसार नारायणगंज ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले आदिवासी बाहुल्य गाँव बोरिया में ग्रामीणों और छात्रों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहना पड़ रहा है। गाँव में न तो कोई पुल है और न ही कोई पक्की सड़क, जिसके कारण हर साल मानसून के मौसम में गाँव के बच्चों को जान जोखिम में डालकर नदी पार करना पड़ता है, जिससे वे स्कूल जा सकें। इस समस्या के कारण बच्चों के भविष्य पर संकट गहरा रहा है। बताया गया कि एक तरफ जहां देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, वहीं बोरिया गाँव के बच्चों के लिए एक सुरक्षित सड़क और पुल अभी भी एक सपना है। मानसून का मौसम जहां हर जगह खुशियां लेकर आता है, वहीं इस गाँव के लोगों के लिए यह भय और चिंता का पर्याय बन गया है। नदी में बाढ़ आने के बाद इसका बहाव इतना तेज़ हो जाता है कि बच्चों का स्कूल जाना बेहद खतरनाक हो जाता है। छात्रा सपना उइके ने अपनी व्यथा बताते हुए कहा कि हम मानसून के दौरान स्कूल नहीं जा पाते हैं, क्योंकि हमारे इलाके में बहुत ज्यादा बारिश होती है। नदी-नालों में पानी का बहाव बहुत तेज होता है। मानसून के लगभग तीन महीनों तक हम स्कूल नहीं पहुंच पाते, जिससे हमारी पढ़ाई का बहुत नुकसान होता है। शिक्षक जो पढ़ाते हैं, वह हम तक समय पर नहीं पहुंच पाता और हम दूसरे बच्चों से पीछे रह जाते हैं। सपना की तरह ही बोरिया गांव के कई आदिवासी छात्र पढ़ाई से वंचित हो जाते है। बताया गया कि कई बच्चों को तो उनके माता-पिता की पीठ पर बैठकर नदी पार करना पड़ता है। हर रोज के इस खतरे की वजह से कई अभिभावक अपने बच्चों को विद्यालय में भेजने से कतराने लगे हैं। इसके कारण वे उन्हें सीधे आश्रम-विद्यालयों में दाखिला दिला रहे हैं, जहाँ सुरक्षित आवास और शिक्षा की सुविधा मिलती है। जिसके कारण बोरिया गाँव के प्राथमिक विद्यालय में छात्रों की संख्या लगातार कम होती जा रही है।
मरीजों ले जाने में भी भारी मुश्किलें
बताया गया कि यह समस्या केवल छात्रों तक ही सीमित नहीं है। गाँव के बुजुर्ग, बीमार लोग और रोजगार की तलाश में जाने वाले ग्रामीणों को भी इसी तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। गाँव के सूरज उइके ने बताया कि पिछले कई सालों से हमारे गाँव में सड़कें नहीं बनी हैं। नदी पर कोई पुल नहीं है। इस वजह से हमें रोजगार के लिए बाहर जाने, बच्चों को स्कूल ले जाने और यहाँ तक कि बीमार मरीजों को अस्पताल ले जाने में भी बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही कई बार तो गर्भवती महिलाओं को भी इसी तरह नदी पार करके अस्पताल पहुँचाना पड़ता है।