मैथली ठाकुर: पिता-दादाजी के गानों को सुनकर लगाव हुआ और गायिका बन गई … देखें… वीडियो…
वेटरनरी कॉलेज के प्लेटिनम जुबली कार्यक्रम में दी प्रस्तुति

जबलपुर, यशभारत।
कहते हैं कि कला किसी उम्र की मोहताज नहीं होती, ये वो सौगात है जो हर किसी के पास नहीं होती । सोशल मीडिया स्टार के तौर पर अपने सुरों और अपनी बुलंद आवाज के साथ लाखों-करोड़ों दिलों पर राज करने वाली मैथिली ठाकुर ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि उनके परिवार में उनके पिताजी और दादाजी शुरू से गाते रहे हैं। उनको देखकर ही वो बड़ी हुई हैं। संगीत के प्रति उनका बचपन से ही लगाव रहा है।

मैथिली को उनके पिताजी से ही संगीत की शिक्षा मिली है। अभी भी उनके पिताजी मैथिली और उनके दोनों भाईयों ऋषभ ठाकुर और अयाची ठाकुर को संगीत की शिक्षा देते हैं और उनका मार्गदर्शन करते हैं। संगीत और पढ़ाई के बीच तालमेल से जुड़े सवाल पर मैथिली ने कहा कि वो इन सबके बीच पढ़ाई को लेकर कभी लापरवाह नहीं होती।
उन्होंने कहा कि हम तीनों ही पढ़ाई में अच्छे हैं। संगीत , व्लॉगिंग , फेसबुक लाइव इन सबके बीच हमारी प्राथमिकता पढ़ाई के प्रति रहती है। उन्होंने कहा कि अगर कोई बच्चा किसी दूसरी एक्स्ट्रा कैरिकुलर एक्टिविटी में अच्छा होता है तो वो पढ़ाई में भी अच्छा कर सकता है। मैथली वेटरनरी कॉलेज के स्थापना दिवस कार्यक्रम में प्रस्तुति देने पहुंची थी।
केसरिया बालम आवोनी पधारो म्हारे देश रे… गाना दिल को छूता है
बिहार के मधुबनी जिले की रहने वाली 21 वर्षीय मैथली ठाकुर का कहना है कि केसरिया बालम आवोनी पधारो म्हारे देश रे… ये गाना दिल को छूता है। हमने सुना था जबलपुर को संस्कारधानी कहा जाता है आज यहां पर लोगों का और जिस कार्यक्रम (वेटरनरी के प्लेटिनम जुबली ) में आई हूं उसमें यहां पर देख भी लिया। माँ नर्मदा के तट पर बसी संस्कारधानी में आकर उन्हें बहुत खुशी हो रही है।