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मासूम की मौत बनी रहस्य : निगली चुम्बक निकाली, फिर बोले- बच्चा नहीं रहा

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इंदौर के अरिहंत हॉस्पिटल में 3 साल के कबीर तिवारी की डेथ अब तक रहस्य ही है। वजह है ढाई महीने बाद भी पुलिस को विसरा रिपोर्ट नहीं मिलना। नतीजा यह है कि जांच अटकी पड़ी है। डॉक्टर्स पर लापरवाही का आरोप है। परिवार का दावा है कि कबीर की मेडिकल रिपोर्ट्स, CCTV फुटेज, उनके बयान और दूसरे एविडेंस भी हैं, लेकिन कार्रवाई आगे नहीं बढ़ रही है। विसरा रिपोर्ट कब मिलेगी, इसे लेकर भी कोई ठोस जवाब नहीं मिल रहा। वे IG हरिनारायणचारी मिश्र से भी मिल चुके हैं।

कबीर ने 29 जुलाई को टॉय मैगनेट (चुम्बक) निगल ली थी। 9 अगस्त को अरिहंत हॉस्पिटल में एंडोस्कोपी के बाद बच्चे की मौत हो गई। परिजन ने एनेस्थीसिया (बेहोशी की दवा) के ओवरडोज और देखभाल में लापरवाही का आरोप लगाया था।

जांच निष्पक्ष हो, इसके लिए कबीर के शव का पोस्टमॉर्टम 5 एक्सपर्ट डॉक्टर के पैनल ने किया था। शॉर्ट पीएम रिपोर्ट में मौत का कारण स्पष्ट नहीं हुआ था। ऐसे में पुलिस ने विसरा सैंपल जांच के लिए भेजा था। पुलिस अब विसरा रिपोर्ट के इंतजार में है तो वहीं परिवार का कहना है कि कबीर की प्री चेक रिपोर्ट, CCTV फुटेज और दूसरे एविडेंस हैं, जो डॉक्टर्स की लापरवाही साबित करते हैं, लेकिन पुलिस इसे पर्याप्त सबूत नहीं मान रही है।

अस्पताल की लापरवाही और ये जांचें
अस्पताल प्रबंधन ने भी मौत का कारण स्पष्ट नहीं बताया। सिर्फ इतना ही कहा कि कबीर का सेचुरेशन कम हो गया था, लेकिन कम कैसे हुआ? यह नहीं बताया। पुलिस ने 16 अगस्त को विसरा रीजनल लैब (राऊ) भेजे जाने की बात कही थी। इसके अलावा कबीर के ब्लड सैंपल (क्वालिटी व क्वांटिटी) की स्पेशल जांच भी थी। टिश्यू, किडनी के भी टेस्ट किए गए थे।

गंभीर मामलों में जल्द मिल जाती है रिपोर्ट
संदिग्ध और गंभीर मामलों में विसरा रिपोर्ट जल्द मंगाए जाने की एक स्पेशल प्रोसेस भी है। इसके तहत संबंधित थाने के TI द्वारा CSP को अनुशंसा की जाती है। फिर CSP द्वारा मामला SP को प्रस्तुत किया जाता है। इसके बाद SP की अनुशंसा के तहत उसे संबंधित विसरा लैब के HPD को भेजा जाता है। इसके तहत फिर उक्त विसरा को जल्द जांच में लेकर रिपोर्ट संबंधित जिले को भेजी जाती है, ताकि जांच शुरू होने के बाद चालान कोर्ट में पेश किया जा सके। इस मामले में अभी तो सही मायने में जांच ही शुरू नहीं हुई है, वहीं जिस प्रकार विसरा रिपोर्ट को लेकर जो लेटलतीफी की जा रही है, उससे खुद पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

 

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