मध्य काल में लघुकाशी वृंदावन के नाम से जाना जाता था जबलपुर

जबलपुर। त्रिपुरी से लेकर जबलपुर तक के नामकरण में मध्य काल में नर्मदा तट के किनारे बसे इस शहर को देश में लघु काशी वृंदावन के नाम से जाना जाता था। आज भी लोग गढ़ा क्षेत्र को लघुकाशी वृंदावन के नाम से जानते हैं। त्रिपुरेश्वर शिवलिंग की स्थापना से ही त्रिपुरी क्षेत्र को शैव मत के लिए पहचाना जाता था। यहां शिव के सबसे ज्यादा प्राचीन मंदिर भी देखने मिलतेहैं। लेकिन जब रानी दुर्गावती केशासनकाल में कृष्ण भक्ति शाखा के पुष्टि मार्ग के प्रमुख संत वल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ आए तो वैष्णव संप्रदाय भी बढ़ा। यहां उन्होंने राधा-कृष्ण के कई मंदिरों की स्थापना की, जिसमें पचमठा मंदिर प्रमुख रूप से शामिल है।
त्रिपुरी काल से बहुतायत में यहां भगवान शंकर के स्थल रहे हैं। इसलिए इस क्षेत्र में शैव मत का प्रभाव रहा। रानी दुर्गावती ने भी अपने शासनकाल में कई शिव मंदिरों का जीर्णोद्धार के साथ शिवलिंग की स्थापना भी कराई। 1559 में कृष्ण भक्ति शाखा के संत विट्ठलनाथ का आगमन हुआ। जो उस समय देश के प्रमुख संतों में गिने जाते थे। विट्ठलनाथ जी की बैठक व्यवस्था देवताल में रही। उस समय इस तालाब को विष्णुताल के नाम से जाना था। उसी समय वैष्णव परंपरा के मदिरों का निर्माण भी प्रमुख रुप से हुआ। यही वह समय था जब यहां शिव भक्ति के साथ कृष्ण भक्ति भी होने लगी। शंकराचार्य मठ के ब्रह्मचारी चैतन्यानंद महाराज बताते हैं कि काशी भगवान शंकर की प्रमुख नगरी में से एक हैऔर वृंदावन भगवान कृष्ण का प्रिय स्थल। जब शिव और राधा-कृष्ण भक्ति का समावेश हुआ तो इसे लघुकाशी वृंदावन का नाम दिया गया। भेड़ाघाट सहित संपूर्ण क्षेत्र में में शिव, गढ़ा में राधा-कृष्ण के मंदिर ज्यादा स्थापित हुए।
राधा-कृष्ण मंदिरों की संख्या बढ़ी :
इतिहासकार बताते हैं कि शहर की भौगोलिक पृष्ठभूमि से यह स्पष्ट है कि त्रिपुरी में त्रिपुरेश्वर शिवलिंग की स्थापना के साथ इस क्षेत्र में शैव मत पर आधारित विभिन्न मंदिरों का निर्माण ज्यादा हुआ। जिसमें प्रमुख रूप से चौसठ चोगिनी, त्रिपुर सुंदरी, काल भैरव, उमा महेश्वर मंदिर शामिल हैं। इसके बाद जब संत विट्ठलनाथ का आगमन हुआ तो गढ़ा कटंगा के महान गोंडवाना साम्राज्य में नगर के हिस्सों में राधा-कृष्ण मंदिरों की संख्या बढ़ी।
तीन साल गढ़ा में रहे संत विट्ठलनाथ :
रानी दुर्गावती के आग्रह पर विट्ठलनाथ तीन साल तक गढ़ा मेंभी रहे। तब रानी ने सम्मान स्वरूप 108 गांव दिए थे। जिन्हें तेलगू ब्राह्मणों को बांट दिया गया था। जब 1563 में विट्ठलनाथ दूसरी बार आए तो रानी दुर्गावती ने उनका विवाह पद्मावती नामक तरुणी से कर दिया था।रानी दुर्गावती के समय यहांहित हरिवंश द्वारा स्थापित राधा वल्लभ संप्रदाय भी पल्लवित हुआ। गढ़ा के दो ब्राह्मण चतुर्भुजदास ओर दामोदरदास इस संप्रदाय में अग्रणी थे। जहां चतुर्भुजदास ने साधना की वहां पचमठा मंदिर का निर्माण कराया गया है।