भाजपा की अंदरूनी कलह सीनियर से ज्यादा सुपीरियर की लड़ाई
BJP's internal strife Battle of superior over senior

जबलपुर, यश भारत। जब सत्ता आती है तो उसके साइड इफेक्ट भी आ जाते हैं। भाजपा तो लंबे समय से सत्ता पर विराजमान है। ऐसे में यहां सत्ता के साइड इफेक्ट नहीं अब तो डिफेक्ट भी आते जा रहे हैं । प्रदेश की सरकार हो या केंद्र की सरकार हो या फिर नगर सरकार हो । सब जगह भाजपा का पर्चाम है और इसके पहले से ही बतौर विधायक और सांसद जबलपुर भाजपा को ही चुनता आ रहा है । ऐसे में यहां सीनियर लीडरशिप की एक लंबी कतार लगी हुई है। जहां आपको तीन बार, चार बार और पांच बार के भी सांसद विधायक मिल जाते हैं। वहीं दूसरी तरफ भाजपा कुछ नए चेहरों पर भी दाओ लगाती रहती है। जो कभी संगठन के बड़े नाम होते हैं तो कुछ बड़े चेहरों के करीबी होते हैं। ऐसे में सीनियरिटी और सुपीरियर की लड़ाई होना लाजमी है। जब की सत्ता का लंबा समय बीत गया है ऐसे में उसके साइड इफेक्ट से तो बचा ही नहीं जा सकता।
ऐसे एक नहीं अनेक उदाहरण है जब सीनियर और सुपीरियर आपस में टकरा गए हो। चंद दिनों पहले ही एक बड़ा आयोजन शहर में हुआ था। एक बड़ा दरबार लगा जहां प्रदेश के मुखिया भी बैठे लेकिन यहां मंच की लड़ाई सड़कों पर तो नहीं आई लेकिन कार्यक्रम स्थल से एयरपोर्ट तक के रास्ते में कुछ नौकर साहो की जमकर क्लास लग गई, फिर उड़न खटोले पर बैठते बैठते शिकवा शिकायतें भी हो गई। यह तो सिर्फ एक बानगी है जो बड़े कार्यक्रम में देखने को मिली। बंद कमरों की बैठकों में तो खुलकर मनभेद दिखाई देते हैं। यह किस्सा कोई आज का नहीं है यह किस्सा तो एक दशक पुराना है लेकिन अब स्थितियां बदलती जा रहे हैं अब बंद कमरे की बात है कभी-कभी सड़कों पर भी दिखाई दे जाती है।
विवाद सिर्फ सीनियरिटी का नहीं है अब तो भाजपा में विवाद उन नाम से भी होने लगा है जो पाला बदलकर पंजे से कमल वाले हो गए हैं। जिसको लेकर सीनियरों में कुछ जूझलाहट दिखाई देती है । सीनियरिटी और सुपीरियर के आप मत भेद उदाहरण है। जहां बाहर से आए हुए लोगों को मंच पर माला तो पहना दी जाती है लेकिन बड़े नाम उन्हें मन ही मन कोष रहे हैं। वर्तमान में भाजपा एक संक्रमण काल से गुजर रही है, लेकिन जब कोई भी राजनीतिक दल सत्ता के सिंहासन पर बैठा रहता है तो संगठन के संक्रमण उसे दिखाई नहीं देते, लेकिन अंदर ही अंदर शरीर को कमजोर करते हैं।
खुद को अनुशासन की ध्वजाधारी बताने वाली पार्टी में कुछ सीनियर खुद को अब ठगा सा महसूस करने लगे हैं। वहीं पार्टी परिवर्तन और नवाचार की बात कहकर संयम रखने का आश्वासन टिका देती है। जबकि पार्टी मजबूत है अपने स्वर्णिम काल से गुजर रही है ऐसे में यह सब बाते पार्टी के परफॉर्मेंस पर बहुत ज्यादा असर नहीं डाल रही है। लेकिन संगठन में एक दीमक का काम कर रही है , यदि यह कलह संगठनात्मक स्तर पर नहीं सुधारी गई तो फिर भाजपा को आने वाले समय में वह दौर देखना पड़ेगा जो दौर पिछले एक दशक से कांग्रेस देख रही है, लेकिन उससे निकल नहीं पा रही है।