जबलपुरमध्य प्रदेशराज्य

बीमारू प्रशासनिक व्यवस्था से अस्पताल हो गया बीमार : चिकित्सकों की कमी, सुविधाओं का टोटा, आमजन परेशान

नरसिंहपुर/तेंदूखेड़ा यशभारत। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तेंदूखेड़ा भगवान भरोसे चल रहा है। पूर्व से ही जहां डाक्टरों की कमी चल रही थी वहीं तीन डाक्टर और चले जाने से अब मात्र दो डाक्टरों के भरोसे ही अस्पताल चल रही है।इनमे एक डाक्टर का असमय निधन हो जाने तथा एक डाक्टर का प्रोमोशन हो जाने के चलते भोपाल चले जाने तथा एक का बान्ड पूर्ण हो जाने की स्थिति मे उक्त तीन डाक्टरों की कमी अस्पताल मे बनीं हुई है।

 

विभिन्न प्रकार की बीमारियों के चलते जहां प्रतिदिन अस्पताल मे मरीजों की भीड़ देखी जा रही है। वहीं डाक्टरों की कमी के चलते गंभीर स्थिति बनी हुई है। पूर्व से स्वीकृत 23 पदों में 09 पद रिक्त पड़े हुए हैं। इनमें चिकित्सा विशेषज्ञ शल्य चिकित्सा विशेषज्ञ तथा स्त्री रोग विशेषज्ञ की एक एक की जरूरत है लेकिन पद खाली पड़े हुए हैं। साथ ही ओप्थेलमिक अस्सिटेंड, लेखापाल लेव सहायक ड्रेसर ओटी सहायक एक एक की जरूरत है वह भी खाली पड़े हुयें है। वाडवाय जहां दो चाहिए वहां मात्र एक ही है। वाहन चालक है ही नहीं। अस्पताल में चिकित्सा अधिकारी पांच है जो एक बंध पत्र चिकित्सक दो संविदा और दो रेग्युलर एक आयुष चिकित्सक 08 स्टाप नर्स एक लैव टेक्नीशियन एक रेडियो ग्राफर एक फार्मासिस्ट तैनात हैं। शेष पद रिक्त पड़े हुए हैं।

आई सी यू वार्ड तैयार लेकिन चलाने वाले विशेषज्ञ नहीं

कोविड काल की तैयारियों और नगण्य स्वास्थ्य सुविधाओं का खामियाजा लगभग हर परिवार ने भोगा है। जिसे लेकर सरकार ने अब हर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एक गहन चिकित्सा कक्ष बनाने का निर्णय लिया है।कोविड काल में अपनी महती भूमिका निभाने वाली तेंदूखेड़ा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भी 12 वेड गहन चिकित्सा कक्ष बन भी चुके है। चूंकि काम ऊपर से निर्धारित हुए ठेकेदार ने करवाया है।छुट पुट व्यवस्थाओं को छोड़कर काम हो भी चुका है। नौ वेड एक साथ और तीन वेड जनरल वार्ड में जगह के मान से स्थापित किए गए हैं।कक्ष बनकर तो तैयार है लेकिन इसे चलायेगा कौन। चूंकि इसे चलाने के लिए सुरक्षा गार्ड के कर्मी नहीं वरन एम डी डाक्टरों की आवश्यकता हुआ करती है और तेंदूखेड़ा की सरकारी अस्पताल स्वास्थ्य कर्मियों के नाम से अछूती है। यहां पर सीखने वाले वांड डाक्टर भेजकर केवल खानापूर्ति की जा रही है। कुछ संविदा डाक्टर और आयुष डाक्टर के कारण अस्पताल चल पा रही है नहीं तो भगवान ही मालिक है। सोचनीय विषय तो यह बना हुआ है कि भीषण गंभीर दुर्घटनाओं के समय उक्त स्टाप ही अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने तत्पर बना रहता है।

सिविल अस्पताल की जरूरत

तीन जिलों की सीमाओं पर स्थित 30 वेड वाले सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तेंदूखेड़ा को अब सिविल अस्पताल बनाये जाने की जरूरत है। बढ़ती मरीजों की संख्या प्रसूति महिलाओं और दुर्घटनाओं को दृष्टिगत रखते हुए अस्पताल में जहां जगह कम पडऩे लगी है वहीं सुविधाओं के विस्तार की महती आवश्यकता है। अस्पताल में माननीयों द्वारा अपनी निधि से प्रदाय की गई सामग्री को रखने के लिए उचित व्यवस्था ना होने के कारण सामग्री बाहन इत्यादि खराब हो रहे हैं।

प्रसूति महिलाओं को हमेशा करना पड़ता है रिफर

एक तरफ जहां महिला सशक्तिकरण से लेकर शासन द्वारा महिलाओं के हितों को लेकर लाडली बहिना योजना चलाकर प्रदेश में पुन: सरकार बनाई है। लेकिन लाडली बहिनें प्रसूति के समय जीवन और मृत्यु के बीच किस तरह से संघर्ष करतीं हैं उनके उपचार हेतु महिला विशेषज्ञ डाक्टर ना होने की स्थिति में गंभीर स्थिति वाली महिलाओं को तत्काल प्रभाव से जिला चिकित्सालय भेजना पड़ता है। त्वरित इलाज के अभाव में महिलाओं को कितना संघर्ष करना पड़ता है। पीडि़तों के परिवार ही बता सकतें हैं। वर्तमान में यहां पर पदस्थ महिला स्टाफ नर्सों और ठेकेदार व्यवस्था के तहत लगी दाई के माध्यम से ही काम चलाना पड़ता है।जो दिन रात सेवाओं में संलग्न देखी जाती है।

पड़ोसी जिलों की भी आती है प्रसूतिकायें

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तेंदूखेड़ा में औसतन साठ से सत्तर डिलेवरी यहां पर हुआ करती है। जिसमें सागर रायसेन जिले के आदिवासी बाहुल्य ग्रामों के लोग भी मुख्य रुप से सुविधा की दृष्टि से यहां पर आते हैं लेकिन परेशानी जब बढ़ जाती है तब कोई महिला लाते समय गंभीर स्थिति में पहुंच जाती है ऐसे समय में महिला विशेषज्ञ डाक्टर की नितांत आवश्यकता होती है। त्वरित फिर उसे ऐम्वुलेंस बाहन सेवा से फिर साठ किलोमीटर दूर नरसिंहपुर भेजना पड़ता है। कभी कभार तो ऐम्वुलेंस बाहन सेवा आस पास हुआ करती है तो मिल जाया करती है नहीं तो काल करके उसे बुलाने से लेकर पहुंचने तक घंटों लग जाते हैं ऐसी स्थिति में प्रसूतिकाओं की गंभीर स्थिति बन जाती है। असली समस्या तो उन पीडि़त परिवारों की बनतीं है जो केवल आशा विश्वास के साथ छोटे छोटे बच्चों को साथ लेकर चले आते हैं। गंभीर स्थिति में महिलाओं को उठानें लिटाने तक में अस्पताल कर्मियों को ही परेशान होना पड़ता है।

महिला विशेषज्ञ डाक्टर की नहीं हो सकी व्यवस्था

सोचनीय विषय तो यह बना हुआ है कि अस्सी हजार से अधिक महिलाओं के बीच एक भी महिला विशेषज्ञ डाक्टर नहीं है और यह व्यवस्था चालीस से साठ किलोमीटर के बीच कहीं भी नहीं है। महिलाओं को जबलपुर भोपाल नागपुर के अलावा नरसिंहपुर जिला मुख्यालय जाना पड़ता है। यहां तक की सोनोग्राफी करवाने के लिए भी नरसिंहपुर या अन्य जगह आना जाना पड़ता है। पिछले कई दशकों से यहां पर महिला विशेषज्ञ चिकित्सक की मांग चली आ रही है लेकिन इस व्यवस्था पर आज तक ध्यान नहीं दिया गया। महिलाओं ने हमारे प्रतिनिधि को बताया है कि तेंदूखेड़ा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में महिला विशेषज्ञ डाक्टर की शीघ्र सुविधा उपलब्ध कराई जाये।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
WhatsApp Icon Join Youtube Channel