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पौराणिक काल का दिव्य व्यास नारायण मंदिर : यहाँ हजारवें अंश के आधे भाग में शिव का वास… इस कारण नर्मदा जी की धारा दक्षिण दिशा में हुई… पढ़ें महादेव की अनुपम लीला

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मंडला lजिला मुख्यालय के राजराजेश्वरी मंदिर के पास स्थित व्यास नारायण मंदिर स्थापित है। पुराणिक काल के अनुसार यहां श्री व्यास नारायण जी का आश्राम हुआ करता था जो कि अब वर्तमान में राजराजेश्वरी किला वार्ड मंडला में स्थित है, नर्मदा पुराण में वर्णन विस्तार पूर्वक मिलता है। यह एक अत्यंत प्राचीन एवं ऐतिहासिक मंदिर है, इस स्थल पर भगवान व्यास जी सपत्नी सहित आश्रम में रहते एवं तपस्या करते थे। बताया गया कि कुछ समय बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति के अवसर पर व्यास जी ने सभी देवी देवताओं एवं ऋषि मुनियों को आमंत्रित किया एवं उनसे भोजन करने का निवेदन किया।

 

तब देवी देवताओं एवं ऋषियों ने नर्मदा के दक्षिण तट पर भोजन करने पर वृत भंग हो जाने की बात कही। तब व्यास जी ने नर्मदा जी की स्तुति कर उन्हें प्रसन्न किया एवं व्यास जी के पीछे पीछे वे उनके आश्रम के दक्षिण की ओर से बहने लगी पूर्व में नर्मदा जी व्यास तीर्थ के उत्तर से बहती थी। इस तरह संपूर्ण देवी देवताओं एवं ऋषि मुनियों ने अन्न-जल ग्रहण कर व्यास जी को सम्मानित किया और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें वरदान दिया कि मैं नर्मदा के तट पर स्थित आपके आश्रम में प्रत्यक्ष रहूँगा और हजारवे अंश के आधे भाग में तुम्हारे आश्रम में स्थित शिव मंदिर में निवास करूँगा। तब से इस आश्रम के शिव मंदिर का नाम श्री व्यास नाराणय मंदिर कहां जाने लगा। जानकारी अनुसार लोगों की आस्था आज भी इस मंदिर से बहुत अटूट है, प्रतिवर्ष सावन के अंतिम सोमवार को श्री व्यास नारायण जी को पालकी यात्रा निकाली जाती है, और महाशिवरात्रि पर्व में भक्तों का हूजुम उमड़ता है। शिवरात्रि पर्व में अल सुबह से ही व्यास नारायण मंदिर में स्थापित भोलेनाथ की पूजा, अर्चना के लिए भक्तों की भीड़ एकत्र हो जाती है। बताया गया कि सावन में निकलने वाली पालकी यात्रा का नगर भ्रमण कराया जाता है।

 

जगह जगह भोले नाथ का भव्य स्वागत किया जाता है, यह परम्परा वर्षो से चली आ रही है। पालकी यात्रा भव्यता के साथ निकाली जाती है, पालकी की सजावट इतनी की जाती है कि सभी लोग देखते ही रह जाते है। हजारों की संख्या में श्री व्यास नारायण के भक्त इस भव्य पालकी यात्रा में अपनी सहभागीता निभाते है।

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