कटनीमध्य प्रदेश

नागपंचमी पर्व पर यशभारत विशेष : अखाड़े सूने, सिर्फ रस्म अदायगी कम हो गए मल्लविद्या के शौकीन

पहलवानी के दांव-पेंच से परिचित नहीं नई पीढ़ी, जिम में हाथ आजमा रहे युवा

कटनी, यशभारत।

IMG 20240809 133707 Screenshot 20240809 133207 WhatsApp अब नागपंचमी का त्योहार परंपरा बनकर रह गया है। पहले जैसी रौनक नहीं दिखाई देती है। अब अखाड़ों में दंगल के अयोजन कम होते हैं। भारतीय परंपराओं पर पाश्चात्य संस्कृति हावी हो गई है। नागपंचमी का पर्व सिर्फ परंपरा तक ही सिमटकर रह गया है। आज के युवा आधुनिकता की चकाचौंध में आकर अधिक पैसा खर्चकर जिम जा रहे हैं। शरीर को स्वस्थ रखने का प्रयास करते हैं, जबकि मिट्टी वाले अखाड़ों में वर्जिश करना अधिक फायदेमंद होता है। अखाड़े में व्यायामशाला, पहलवान कुश्ती आदि सीखते थे और कला सीखते और सिखाते है। अखाड़ा साधुओं का वह दल है, जो शस्त्र विद्या में भी पारंगत रहता है। जिले में भी अखाड़ों के बड़ा इतिहास है।
शहर में लगभग दर्जन भर से ज्यादा अखाड़े है, लेकिन अब उन अखाड़ों का सिर्फ नाम रह गया है, हालांकि शहर में संचालित सुख्खन अखाड़ा अभी भी अपनी साख बरकरार रखते हुए संचालित है। अखाड़ों उस्ताज बताते हैं कि 18वी सदी में इधर सन्यासियों का डेरा था और हिंदुओ के धर्म गुरु शंकराचार्य जी के निर्देश पर ये सन्यासी पूरे देश में अखाड़ो की स्थापना करते थे। उन्ही के द्वारा इस अखाड़े की नींव रखी गई थी। लगभग 200 सालो से संचालित इस अखाड़े का स्वरूप बदलता रहा। लोग जुड़ते और छूटते रहे। अब भी सुख्खन अखाड़ा पुराने अंदाज से आधुनिकता के परिवेश के साथ संचालित है। श्री सुख्खन उस्ताज जी वैसे तो पहले खलीफा हुए। उन्ही ने अखाड़े में लोगो को जोड़ा और फिर मुन्नू लाल साहू अखाड़े का संचालन किया, तब से लेकर आज तक नामी उस्ताजो के मार्गदर्शन में अखाड़़ा संचालित होता रहा और वर्तमान में सुख्खन अखाड़े में मुरलीधर देववंशी खलीफा है। सुख्खन अखाड़े की देखरेख के लिए अखाड़ा विकास समिति भी बनाई गई, जिसके अध्यक्ष राजकुमार कांचकार है। इन्हीं के मार्गदर्शन में अभी भी 700 सौ से ज्यादा लोग जुड़े है, जो रोजाना अखाड़े में विभिन्न विधाओं को सिखाते और सिखाते है। इस अखाड़े के पहले उस्ताज मुरलीधर बताते है कि शहर में शिवा जी अखाड़ा, रामायण समाज अखाड़ा, कुठला सेवादल अखाड़ा, पाठक अखाड़ा, मस्तराम अखाड़ा, ऑर्डिनेंस फैक्ट्री अखाड़ा के अलावा अन्य अखाड़े भी संचालित है। अखाड़ा, में चार विधाएं चलती है। कुश्ती कला, योग व्यायाम, लकड़ी पटा और आधुनिकता के परिवेश में जिम भी संचालित है।

■ आज भी सुख्खन अखाड़ा में युवाओं को सिखाए जा रहे कुश्ती कला के दांव-पेंच

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अखाड़ा समिति के अध्यक्ष राजकुमार कांचकर बताते है कि हमारे यहां अखाड़े के अलावा जिम भी मध्यम वर्गीय वर्ग के बजट में संचालित है, हालांकि अखाड़े में सब कुछ नि:शुल्क है, फिर भी इतने बड़े अखाड़े व जिम के मेंटनेंस के लिए हम कुछ चार्ज लेते है। श्री कांचकर ने बताया कि पहलवानों के लिए एक रूम अलग है, जिसमें सभी अखाड़े के सदस्य शरीर को सुदृढ़ रखने और संकट के समय में सुरक्षा की दृष्टि से खुद को एक से बढक़र एक दांव-पेच का अभ्यास करते हैं, साथ ही अस्त्र विद्या भी सीखते थे। वर्तमान समय में भी अखाड़े हैं, जो आज भी राष्ट्र को संकट में आने पर ज्ञान आदि से लोगों को सही राह पर लाने के लिए तत्पर रहते हैं। आज नागपंचमी के अवसर पर सुबह अस्त्र शस्त्र और अखाड़े में विराजे हनुमानजी की की पूजा अर्चना की गई और शाम 4 बजे अखाड़े में पंचमी के उपलक्ष्य में पूजन के साथ बैड लिफ्टिंग स्पर्धा भी आयोजित की गई है। समिति ने सभी से उपस्थिति की अपील की है।

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