टंट्या भील महान क्रांतिकारी थे, 12 साल तक ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष किया
केन्द्रीय जेल से पवित्र मिट्टी खण्डवा ले जाने वाले कार्यक्रम में बोले प्रभारी मंत्री


जबलपुर,यशभारत। संघर्ष ही भविष्य बनाता है। शहीदों की चिताओं पर भरेंगे हर बरस मेले वतन पर मिटने वालों का यहीं बाकी निशा होगा… यह बात सही है। यह मिट्टी का कलश अपने स्थान पर जाएगा। इसके पीछे भाव यही है कि हम अपने इतिहास के लिए जा रहे है । हमारी यह गौरवपूर्ण संस्कृति है। 1857 में जिन लोगों ने भाग लिया था, उनके नाम पर क्या है और दूसरी ओर जिन लोगों ने देश के लिए कुछ नहंी किया उनके नाम तमाम स्टेशन, इस्टीट्यूट के नाम है। हम टंट्या स्टेशन नाम रखने जा रहे है। टंट्या भील महान क्रंातिकारी थे, 12 साल तक ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष किया ऐसे शहीद को नमन। यह बात प्रभारी मंत्री ने गोपाल भार्गव ने अमर शहीद टंट्या भील की शहीद स्थली केन्द्रीय जेल, जबलपुर में आयोजित ‘शहीद स्थली से पवित्र मिट्टी संचय अनुष्ठानÓ कार्यंक्रम में कही।
प्रभारी मंत्री ने कहा कि टंट्या भील उन महान क्रांतिकारियों में से एक थे जिन्होंने बारह साल तक ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष किया और विदेशी शासन को उखाड़ फेंकने के अपने अदम्य साहस और जुनून के कारण जनता के लिए खुद को तैयार किया। राजनीतिक दलों और शिक्षित वर्ग ने ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के लिए जोरदार आंदोलन चलाया। टंट्या भील, भील जनजाति के सदस्य थे। उनका जन्म 1840 में तत्कालीन मध्य प्रांत के पूर्वी निमाड़ (खंडवा) की पंधाना तहसील के बडाडा गाँव में हुआ था, जो वर्तमान में भारतीय राज्य मध्य प्रदेश में स्थित है।
जनता के महानायक के रूप में उभरे
प्रभारी मंत्री ने कहा कि ट्ंटया भील ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद किया था। वह आदिवासियों और आम लोगों की भावनाओं के प्रतीक बन गए। लगभग एक सौ बीस साल पहले टंट्या भील जनता के एक महान नायक के रूप में उभरे और तब से भील जनजाति का एक गौरव बन चुके है। वह वंचितों का मसीहा था। उन्हें सभी आयु वर्ग के लोगों द्वारा लोकप्रिय रूप से मामा कहा जाता था। उनका यह संबोधन इतना लोकप्रिय हुआ कि भील आज भी मामा कहे जाने पर गर्व महसूस करते हैं।