सतना, चित्रकूट। श्रीरामचंद्र पथ गमन न्यास, भोपाल के तत्वावधान में शुक्रवार को दीनदयाल शोध संस्थान, चित्रकूट के डॉ. राममनोहर लोहिया सभागार में ‘अरण्यवासी श्रीराम व्याख्यानमाला – शाश्वतम्’ का भव्य आयोजन सम्पन्न हुआ।
कार्यक्रम का शुभारंभ प्रभु राम की प्रतिमा पर माल्यार्पण और दीपप्रज्ज्वलन के साथ किया गया। इस व्याख्यानमाला में राम के जीवन, उनके संदेश और उनके आदर्शों को आधुनिक समाज और युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बताया गया। यह व्याख्यानमाला राम के आदर्श और उनके जीवन मूल्यों को अपनाकर आज का समाज और युवा आत्मनिर्भर, नैतिक और आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाने का स्पष्ट संदेश देती है।
‘मर्यादा’ और ‘धर्म’ पर आधारित हैं प्रभु राम का जीवन
अध्यक्षीय उद्बोधन में अभय महाजन ने कहा कि राम का जीवन दर्शन ‘मर्यादा’ और ‘धर्म’ पर आधारित है। राम के आचरण से हर व्यक्ति को सत्य, करुणा और आत्मसंयम का पालन करना सीखना चाहिए। राम का नाम सभी आंतरिक बुराइयों को दूर करता है और समाज में नैतिक और आध्यात्मिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।
नवलेश दीक्षित ने अपने उद्बोधन में कहा कि ब्रह्मांड का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल चित्रकूट है। राम का जीवन सत्य, प्रेम, करुणा और समतामूलक समाज का संदेश देता है। उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे भौतिकता की अंधी दौड़ में उलझे बिना आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों को अपनाएँ।
कुलगुरु डॉ. भरत मिश्रा ने बताया कि राम ने समाज को स्वावलंबी और एकजुट बनाने का कार्य किया। महंत सीताशरण दास ने कहा कि वनवास के माध्यम से राम ने सामाजिक समरसता स्थापित की और जनमानस को अपने आदर्शों से प्रेरित किया।
डॉ. रामनारायण त्रिपाठी ने चित्रकूट की महिमा को उजागर करते हुए कहा कि यह भूमि तप, त्याग और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। उन्होंने राम के जीवन दर्शन को केवल सिद्धांत नहीं बल्कि सत्य, धर्म और मानवतावादी मूल्यों का व्यावहारिक उदाहरण बताया।
कार्यक्रम में गायत्री शक्तिपीठ के प्रबंधक डॉ. रामनारायण त्रिपाठी, चित्रकूट के प्रसिद्ध कथावाचक नवलेश दीक्षित, जानकी महल के महंत सीताशरण दास, महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलगुरु डॉ. भरत मिश्रा, पूर्व सांसद आरके सिंह पटेल, दीनदयाल शोध संस्थान के राष्ट्रीय संगठन सचिव अभय महाजन, कोषाध्यक्ष वसंत पंडित, नगर परिषद चित्रकूट की अध्यक्ष साधना पटेल सहित अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया।
प्रमुख बिंदु:
रामायण और राम के जीवन से आधुनिक युवाओं के लिए नैतिक शिक्षा।
वनवास को सामाजिक समरसता और संगठन का प्रतीक बताया गया।
चित्रकूट को केवल तीर्थस्थल नहीं बल्कि मानवता, संस्कृति और नैतिकता का केंद्र बताया गया।
कार्यक्रम में स्मृति चिन्ह और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से प्रतिभागियों को सम्मानित किया गया।