
कोरोना संक्रमण भले ही अब कुछ नियंत्रित हो लेकिन पोस्ट कोविड मरीजों में जोड़ों के दर्द, थकान, कमजोरी और विटामिन डी कमी वालों मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही हैं। इनमें वे कोविड मरीज भी हैं जिन्हें ठीक होकर एक साल हो गया लेकिन अब उसका प्रभाव थकान, कमजोरी व जोड़ों के दर्द के रूप में सामने आ रहा है। स्थिति यह है कि सरकारी, प्राइवेट अस्पतालों व क्लिनिकों में इनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है। इसी तरह इनकी जांच कराने के मामलों में भी प्राइवेट लैबों में मरीजों की संख्या बढ़ रही है। डॉक्टरों का कहना है कि ये रेमडेसिवर का नहीं बल्कि कोरोना वायरस का ही असर है जो मरीज के ठीक होने के बाद ऐसे लक्षणों के रूप में सामने आता है। ऐसे मरीजों को ठीक होने में डेढ़ से दो माह का समय लग रहा है।
दरअसल, ये परेशानी कोरोना की पहली तथा दूसरी लहर में ग्रस्त रहे दोनों मरीजों में पाई जा रही है। खास बात यह कि तीन-चार महीने तक इसका इतना पता नहीं चलता लेकिन फिर शुरुआत थकान, कमजोरी और खासतौर पर जोड़ों के दर्द में उभरकर आ रही है। इसमें भी मरीजों को ज्यादा परेशानी रात को सोने के दौरान होती है जब मांसपेशियों में जकड़न हो जाती है। ऐसे में दर्द के कारण वे ठीक से सो नहीं पाते और करवट लेने तक में असहनीय दर्द हो रहा है। पद्मावती कॉलोनी निवासी बालकृष्ण राठौर को नवंबर 2020 में कोरोना हुआ था लेकिन यह दर्द अप्रैल से शुरू हुआ। इस बीच तीन डॉक्टरों से इलाज कराया, अब उन्हें थोडा आराम है। ऐसी ही परेशानी कोरोना ग्रस्त रहे चंद्रेशेखर (चंदू) भोंसले की है। हुष्ट-पुष्ट शरीर के बावजूद खासकर अभी भी हाथों के जोड़ों में काफी दर्द होता है। फिजियोथैरेपी जारी रखी तो कुछ समय आराम रहा लेकिन फिर दर्द शुरू हो गया।
दो माह बाद हो रहे ठीक
शहर के वरिष्ठ डॉ. डी. मैत्रा के मुताबिक ऐसे मरीजों की संख्या कोरोना के बाद से काफी बढ़ी है। अमुमन रोज 4-5 जोड़ों के दर्द के मरीज आ रहे हैं। कुछ तो ऐसे रहते हैं कि वे हाथ-पैर ठीक से उठा नहीं सकते। ये किसी ड्रग के इफेक्ट नहीं बल्कि पोस्ट कोविड के लक्षण के रूप में सामने आए हैं। इसमें थकान, कमजोरी व जोड़ों का दर्द काफी होता है। कई मरीजों में विटामिन डी की कमी भी रहती है। ऐसे मरीज दो माह तक ट्रीटमेंट लेने के बाद ठीक हो रहे हैं।
डॉ. प्रवीण दाणी (मेडिसिन) के मुताबिक रोज क्लिनिक में 4-5 मरीज इन लक्षणों के आ रहे हैं। ये सभी पोस्ट कोविड वाले होते हैं। इसके तहत उनके थकान, मांसपेशियों में खिंचाव व जोड़ों का दर्द भी होता है। ऐसे मरीजों में विटामिन डी की कमी देखी जा रही है जिससे मांसपेशियों में सिकुड़न व कैल्शियम सेल्स में मेटाबॉलिक बदलाव आने लगते हैं। इसके चलते हाथ-पैर में लगातार दर्द बना रहता है। इन मरीजों को ट्रीटमेंट दिए जाने के बाद उन्हें ठीक होने में डेढ़ से दो माह लग रहे हैं।
अभी रिसर्च का विषय
डॉ. प्रदीप श्रीवास्तव, (रिटायर्ड अर्थोपैडिक एक्सपर्ट, MYH) ने बताया कि इस तरह के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इन्हें विटामिन डी के उपचार की मेडिसिन के साथ कैल्शियम, बी-12 व बी-6 आदि मल्टी विटामिन आदि दिए जा रहे हैं। कुछ मरीजों में ज्यादा कमजोरी, थकान व जोड़ो का दर्द बोता है खासतौर पर बच्चों में, ऐसे मरीजों को विटामिन डी का नॉर्मल टेस्ट कराने की सलाह दी जाती है। दरअसल विटामिन डी की जांच काफी महंगी (1000 से 1500 रु. के बीच) होती है। इसके चलते हरसंभव दवाइयों से ही उपचार की कोशिश रहती है। वैसे अभी यह रिसर्च का विषय है कि पोस्ट कोविड मरीजों में किन कारणों से मरीजों को ऐसी परेशानी हो रही है। सेंट्रल लैब डायरेक्टर डॉ. विनीता कोठारी के मुताबिक बीते समय में बड़ी संख्या में विटामिन डी की जांचें हुई हैं जिसका डाटा कम्पाइल किया जा रहा है। अभी भी ऐसे मरीज लगातार सामने आ रहे हैं।