कैसी होगी जिला भाजपा की नई टीम ? क्या इस बार विद्यार्थी परिषद की छाया से मुक्त होगी पार्टी, टंडन की नई टीम में जगह पाने चौकन्ने हुए नेता
पिछले कार्यकाल में राजनीतिक वनवास काटने वालों का क्या इस बार होगा पुनर्वास, प्रदेश अध्यक्ष पर रहेगा बहुत कुछ दारोमदार, वीडी हटे तो बदलेंगे समीकरण, अन्यथा टंडन फिर रहेंगे फ्री हैंड

कटनी ( आशीष सोनी )। भारतीय जनता पार्टी में अभी प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव नहीं हुआ है, लेकिन जिला कार्यकारिणी में स्थान पाने अभी से लॉबिंग शुरू हो गई है। जिलाध्यक्ष के बतौर दीपक सोनी टंडन की ताजपोशी दोबारा होने के बाद अब जिला कार्यकारिणी में शामिल होने वाले चेहरों को लेकर कयास लगाए जाने लगे हैं। टंडन की नई टीम का बनाव कैसा होगा, काफी कुछ प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव पर निर्भर है। संगठन के मुखिया के रूप में यदि वीडी शर्मा की भी दोबारा वापसी हो गई तो टंडन की टीम में बहुत ज्यादा फेरबदल की गुंजाइश बहुत कम है, किंतु यदि प्रदेश संगठन की कमान किसी और नेता के हाथ आ गई तो जिले की टीम के चेहरे बदल जायेंगे। यह भी तय है कि जिला कार्यकारिणी का गठन प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के बाद ही होगा, किंतु अभी से भाजपा के नेता चौकन्ने हो गए हैं।
जिलाध्यक्ष को लेकर इस बार आधा दर्जन से ज्यादा नाम भोपाल से लेकर दिल्ली तक जोर आजमाइश में जुटे थे, किंतु इन सबके निराश होना पड़ा। कुछ नाम तो ऐसे हैं जो अपनी सीनियरिटी की वजह से जिला कार्यकारिणी से बाहर रहना चाहेंगे, किंतु कुछ नाम ऐसे हैं जो जिलाध्यक्ष बनने से चूकने के बाद अब जिले की टीम की ओर रुख कर सकते हैं। दीपक टंडन के पिछले कार्यकाल को देखा जाए तो उन्होंने आधे से ज्यादा समय तो रामरतन पायल द्वारा बनाई गई जिले की टीम से निकाल लिया। इसके बाद उन्होंने एक बड़ा और दो छोटे बदलाव में अपने पसंद के चेहरों की एंट्री करा दी। इस सर्जरी में कुछ को टीम से बाहर किया गया तो कुछ के पर कतर दिए गए। सबसे पहले जिला महामंत्री और जिला उपाध्यक्ष के रूप में कार्य कर रहे चेतन हिंदुजा और सुनील उपाध्याय के पदों में आपस में परिवर्तन कर दिया गया। इसके बाद बड़वारा से विधानसभा चुनाव के लिए धीरेन्द्र सिंह की तैयारी कराने के लिए उन्हें जिले की टीम में शामिल करते हुए महामंत्री बना दिया गया। अगले बदलाव में अंकिता तिवारी को मंत्री पद से प्रमोशन देकर सीधे जिला उपाध्यक्ष और न्यू फेस के रूप में आशीष गुप्ता बाबा की एंट्री की गई। क्षेत्रवार संतुलन साधने के नाम पर बहोरीबंद से सीता सोनी और विजयराघवगढ़ से शांति यादव को शामिल किया गया। इन तमाम चेहरों को जिले की टीम में लाने के लिए भाजपा की वरिष्ठ नेत्री और पूर्व महिला मोर्चा अध्यक्ष भावना सिंह, गीता गुप्ता और किरण जैन को पदों से हटाकर कार्यकारिणी सदस्य के ओहदे तक सीमित कर दिया गया। ये सारे परिवर्तन जिलाध्यक्ष ने अपनी पसंद के आधार पर प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा से मुहर लगवाकर किए। पायल के जमाने के कुछ चेहरों को उन्होंने यथावत रखा। कुल मिलाकर पूरी जिला कार्यकारिणी में उन्होंने फुली ऑपरेशन के बजाय छोटे छोटे चीरे लगाकर काम चला लिया।
विद्यार्थी परिषद का रहा वर्चस्व
दीपक सोनी टंडन चूंकि खुद विद्यार्थी परिषद और आरएसएस की पृष्ठभूमि के नेता हैं, और संघ से मुक्त कराकर रामरतन पायल की कार्यकारिणी में सीधे जिला उपाध्यक्ष बनाए गए थे, इसलिए पूरे कार्यकाल में उनकी टीम भी विद्यार्थी परिषद की छाया से मुक्त नहीं हो सकी। वीडी शर्मा पर भी आरोप लगे कि चूंकि वे खुद भी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की पाठशाला में सियासत का ककहरा सीखने वाले नेता हैं, इसलिए अपने संसदीय क्षेत्र की बिसात में भी उन्होंने उन मोहरों को आगे बढ़ाया जो विद्यार्थी परिषद के जमाने में उनके सहयोगी थे। रणवीर कर्ण, अम्बरीष वर्मा, आशीष गुप्ता और अंकिता तिवारी को पूरे कार्यकाल न केवल महत्व मिला बल्कि पार्टी के तमाम कार्यक्रमों की जिम्मेदारी भी इन्हें ही सौंपी जाती रही। पूरे कार्यकाल अनेक वरिष्ठ नेता ऐसे रहे जो जिले की टीम में जगह नहीं पा सके। एक समय ऐसा भी आया जब हवा संगठन के प्रतिकूल बहने लगी, तो टीम से बाहर के कुछ नेताओं को लगभग पुचकारने के अंदाज में कुछ न कुछ दायित्व सौंप दिए गए। खुद दीपक सोनी टंडन जब पार्टी के भीतर विरोधियों से घिरे नजर आने लगे तो वीडी ने टेका लगाने के लिए पीतांबर टोपनानी जैसे अनुभवी नेता को उनके साथ जोड़ दिया। अपनी मेहनत से पीतांबर कुछ डैमेज कंट्रोल में सफल हुए भी, फिर भी आलोचकों का मुंह वे भी बंद नहीं कर सके।
क्या इस बार छवि तोड़कर काम करेंगे टंडन, या घिरे रहेंगे कॉकस से
वीडी की मोर्चेबंदी से दूसरा कार्यकाल हासिल कर पाने में सफल होने के बाद भाजपाई गलियारों में एक ही सवाल उठ रहा है – दीपक टंडन को लेकर जो परसेप्शन बन चुका है, वह टूटेगा या नहीं ? पिछले कार्यकाल में उन पर भाजपा की जिला टीम को एव्हीपी की टीम बना देने के जो आरोप लगते रहे, उन आरोपों को इस बार पोंछ डालेंगे या या उसी कॉकस से घिरे रहेंगे ? ये तमाम सवाल अभी भविष्य की गर्त में है, किंतु टंडन को इस बार उन सभी बातों का ध्यान रखना होगा, जो उनकी पिछली पारी के लिहाज से माइनस मानी जाती हैं। प्रदेश संगठन के मुखिया के रूप में यदि वीडी की भी वापसी हो गई, तब तो टंडन को फिर से खुलकर बैटिंग करने का मौका मिल जाएगा, किंतु यदि प्रदेश अध्यक्ष बदल गया तो उन्हें नए अध्यक्ष के साथ तालमेल बनाकर काम करने की चुनौती होगी, जिसके वे आदी नहीं है। ऐसी सूरत में वे जिला भाजपा में मनमाने फैसले नहीं ले पाएंगे, क्योंकि जिले के बाकी नेता भी प्रदेश अध्यक्ष को फीडबैक देंगे। यह सारा परिदृश्य कुछ दिनों बाद सामने आ जायेगा। फिलहाल भाजपाई सियासत में वे तमाम चेहरे अभी से चौकन्ने हैं, जो पिछ्ले कार्यकाल में पूरे समय लगभग हाशिए पर रहे। उन्हें अब राजनीतिक वनवास से मुक्ति चाहिए, इसके लिए उन्हें जिले की टीम में पुनर्वास चाहिए….जो टंडन की कृपा से ही हो पाएगा। कुछ दिन बाद समीकरण बदल जाएं, इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता।
टीम में जातिगत समीकरण और महिला आरक्षण का रखना है ध्यान
नई टीम के गठन में चुनौतियां तो कई होंगी, लेकिन सबसे बड़ा संतुलन महिला आरक्षण और जातिगत समीकरणों को साधकर चलने का होगा। पार्टी अनेक जिलों में महिलाओं को जिलाध्यक्ष बनाकर सीधा संदेश दे चुकी हैं कि संगठन की आंतरिक व्यवस्था में 33 फीसद पदों पर जिम्मेदारी सौंपने की ओर कदम बढ़ा चुकी है, ऐसे में जिले की टीमों में भी उसी अनुपात से प्रतिनिधित्व देना होगा। कटनी जिले में अनेक सक्रिय महिलाएं भाजपा की सियासत का हिस्सा है। उम्र के लिहाज से युवा चेहरों को मौका देने के साथ जातिगत समीकरणों का भी ध्यान रखना होगा। इसके अलावा जिन मंडल अध्यक्षों की दोबारा ताजपोशी नहीं हो सकी है, वे भी अब जिले की टीम में शामिल होने के लिए जुगत भिड़ा सकते हैं। मुड़वारा विधानसभा क्षेत्र के तो कई पूर्व मंडल अध्यक्ष इस दौड़ में है। कुल मिलाकर उम्मीद की जा रही है कि इस बार का बनाव ऐसा होगा, जिसमें मायमैन शैली कम और पारदर्शिता ज्यादा दिखे। ऐसे चेहरे तलाशने होंगे जिनका समाज में आधार हो और जनता से सीधा जुड़ाव हो।


