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काल बने ट्रेक्टर, ट्रक, डंफर एवं हाईवा का कहर  : आए दिन मासूमों की हो रही मौत , प्रशासन नहीं ले रहा इनके खिलाफ कोई ठोस एक्शन

मंडला जिले में लगातार जारी है रेत का अवैध कारोबार जिसके चलते मंडला नगरवासी परेशान हैं कि उन्हें रेत नहीं मिल रही और मिल भी रही है तो कीमत ज्यादा देना पड़ रहा है। मंडला जिले की बेस कीम‍ती रेत बाहर संभागों दूसरे जिले में बेची जा रही रॉयल्टी एक गाड़ी की कट रही और रेत 10 ट्रक निकल रही। बड़े बड़े डंफर हाईवा से सप्लाई की जा रही रेत दूसरे जिला में। कमाई के चक्कर में आम इंसान की जिंदगी दिख नहीं रही। शहरों के बीच से भारी स्पीड से निकल रहे रेत के ट्रकों एवं डम्फलरों से रोज घट रही दुर्घटना। 27 जून गुरुवार को कटरा बायपास तिंदनी में दो घटनाएं हुई जिनमें तिंदनी ग्राम पंचायत के एक पैदल राहगीर की जान चली गई। इसके बाद पुन: उसी दिन मोटर साईकिल सवार दो लोगों को भी ओव्हदरलोड ट्रक द्वारा रौंद दिया गया। जिसमें से एक की टांग पूरी तरह से जख्मीे हो गया और दूसरे की घटना स्थाल में ही जान चली गई।

खनिज विभाग के साथ परिवहन विभाग भी मौन साधे हुए हैं किसके संरक्षण में हो रहा रेत का अवैध कारोबार यह अबूझ पहेली है ना ही जांच की जा रही है। खनिज विभाग द्वारा न ही परिवहन विभाग गाड़ियों के पेपर जांच नहीं कर रहे हैं। इनसे जुडे मंडला जिले के सरकारी कर्मचारी करोड़ों में खेल रहे हैं। जिला प्रशासन की नाक के नीचे हो रहा है कारोबार जिससे मंडला जिलावासी परेशान हैं कि हमारे जिले की रेत का उपयोग हम नहीं कर पा रहें दूसरे कर रहे।

जिले में हाईवा जो चल रहे हैं यह सब मानो यमदूत ही दौड़ रहे हैं। न जाने कब किसको यमराज के पास पहुंचा दें। पिछले कुछ वर्षों से देखने को मिल रहा है कि यहॉ जो क्षेत्र में एक्सीडेंट हो रहे हैं एक्सीडेंट नहीं हैं बल्कि हत्याएं हैं। पहले भी एक्सीडेंट हुआ करते थे, एक दो महीने में एकाध किंतु अब तो बाढ़ सी आ गई है। प्रतिदिन एक एक्सीडेंट किसी न किसी क्षेत्र में होता रहता है।

 

क्या सकरी गलियां, क्या रोड, क्या गांव की रोड हो। क्या राज्यमार्ग, क्या राष्ट्रीय राजमार्ग और कामोवेश एक्सीडेंट में भारी वाहन हाईवा ही ज्यादातर रहते हैं। लोग निमित्त मानकर नियति मानकर अवर्दा मानकर छोड़ देते हैं किंतु गौर करने वाली बात यह है कि पैसे कमाने की हवस में आदिवासी जिले को कमाऊ कुंड समझ रखा है। अन्य क्षेत्र में भी बाहर के अधिकारी कर्मचारी ठेकेदार यही रवैया अपना रहे हैं किंतु हाईवा से मौत का कारण तो हत्या ही समझ में आता है क्योंकि अधिकांश हाईवा मालिक जिले के बाहर के हैं जो कि राजनीतिक संरक्षण में काम कर रहे हैं और दिन में दो ट्रिप रात में पांच ट्रिप लगवा रहे हैं।

 

अब तो आलम यह है कि लाइसेंस धारी चालक केस बनवाने के पैसे लेते घूमते रहते हैं। नशेड़ी नाबालिक जिनको ट्रैक्टर चलाना भी नहीं आता ऐंसे लोग सडकों में बिना लायसेंस के हाईवा दौड़ा रहे हैं। उनके पैर एक्सीलेटर ब्रेक में नहीं पहुंच पा रहे किंतु पैसे की हवस में कई जिंदगियों को खत्म करते हुए यह बेखौफ होकर चलाते हैं। हत्याओं को एक्सीडेंट का मामला बनाने के लिए पूरा का पूरा संवैधानिक ढांचा बैठा हुआ है प्रशासन कार्यपालिका न्यायपालिका आदि सभी। आदिवासी जिले में जिंदगी का कोई मूल्य नहीं बचा।

 

जिसके घर का चिराग बुझता है ना उसे पता चलता है वह इस खोज में नहीं जाता की नशा करके नाबालिक चल रहा था या लाइसेंस धारी था। वह तो अपने-अपनी किस्मत को वहीं समाप्त मान कर आगे संघर्ष शुरू कर देता है और अपना जीवन यापन अपनों के बगैर जीना प्रारंभ कर देता है यही कड़वा सच कई वर्षों से सबके मन में कौंध रहा है किंतु बोलने वाला कोई नहीं इस मामले में खासकर राजनीतिक दल तो मौन साधे हुए हैं।

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