कलेक्टर ने बच्चों को बाइबल पढ़ाने वाले करुणा नव जीवन रिहेबिलेशन सेंटर की मान्यता समाप्तः 7 विकलांग छात्र अब उज्जैन में रहेंगे

जबलपुर, यशभारत। गौर गौरैयाघाट बरेला में संचालित हो रहे हैं करुणा नव जीवन रिहेबिलेशन सेंटर की मान्यता समाप्ति के आदेश कलेक्टर कर्मवीर शर्मा ने जारी कर दिए हैं।करुणा नव जीवन रिहेबिलेशन सेंटर के संचालकों द्वारा विकलांग छात्रों को बाइबल पढ़ाए जाने के बाद कलेक्टर द्वारा यह कार्रवाई की गई है। सेंटर में अध्यनरत 7 विकलांग छात्रों को अब उज्जैन के आश्रम में शिप्ट किया जाएगा इसके आदेश भी कलेक्टर ने जारी कर दिए हैं।
बच्चों को रखने सक्षम नहीं
अनाथ बच्चों को बिना शासन की अनुमति के रखा नहीं जा सकता है लेकिन इस संस्था ने छोटे बच्चों को संस्था में रखा। संस्था के मैनेजर अभिनव का कहना है कि उनके द्वारा शासन से लगातार पंजीयन के लिए पत्राचार किया गया लेकिन उन्हें अनुमति नहीं मिली। सामाजिक न्याय विभाग की तरफ से डा.रामनरेश पटेल नोडल अधिकारी निशक्तजन अपनी टीम के साथ यहां पहुंचे। उन्होंने मैनेजर से जब जानकारी ली तो कई खामियां मिली। डा.रामनरेश पटेल के मुताबिक दिव्यांगजनों को बाधारहित माहौल में रखना चाहिए लेकिन यहां प्रथम मंजिल में उनके रहने की व्यवस्था है। स्थानीय पंजीयन लेने के बावजूद संस्था में बेंगलुरू और इसके आसपास के ही अनाथ दिव्यांगों को यहां रखा गया है। इसके अलावा संस्था के पदाधिकारी भी जबलपुर में नहीं है। अध्यक्ष जगदीप किशोर दिल्ली इसके अलावा अन्य सदस्य मुंबई, भोपाल, इंदौर और नरसिंहपुर में रहते हैं।

इन छात्रों को अब उज्जैन आश्रम में शिप्ट किया गया है
इन खामियों पर मामला कायम
-किशोर न्याय नियम के तहत सात से 11 वर्ष एवं 12 से 18 वर्ष की उम्र के लड़के एवं लड़कियों के लिये अलग बालगृह होना चाहिए परंतु संस्था में 18 वर्ष से कम उम्र की बालिकाओं एवं अन्य अंतरूवासी एक की प्रांगण मे रह रहे हैं।
किशोर न्याय अधिनियम 2015 की धारा 41 के अनुसार संस्था पंजीकृत होना चाहिए, किंतु उपरोक्त संस्था द्वारा अपना पंजीयन नहीं कराया गया है, एवं बालिकाओं को उनके जैविक धर्म की जानकारी न दी जाकर केवल एक ही धर्म के संबंध में पढाया जा रहा है जो कि मध्य प्रदेश धर्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश 2020 की धारा 3 का उल्लंघन है।
विदेशी फंडिंग
राष्ट्रीय बाल आयोग की टीम की जांच में विदेशी फंडिंग संस्था को होने की जिक्र है। इसमें 12 विदेशी संस्थानों से फंड मिलने की बात कहीं गई लेकिन मैनेजर अभिनव का दावा है कि उनके संस्था को कहीं से विदेशी फंडिंग नहीं मिल रही है। देशभर से जरूर उन्हें फंड मिलता है। उनके मुताबिक सालाना करीब 10 लाख रुपये फंडिंग मिलती है। जबकि संस्था का मासिक खर्च सवा लाख रुपये से ज्यादा होना बताया।
