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ऑल इंडिया कोटे की मेडिकल और डेंटल सीटों में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को नोटिस

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सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल और डेंटल कोर्स के लिए अखिल भारतीय कोटे में ओबीसी (OBC) के लिए 27 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10 फीसदी आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है। केंद्र को दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करना होगा। कोर्ट ने यह नोटिस 27 डॉक्टरों द्वारा दायर दो अलग-अलग याचिकाओं को लेकर भेजा है, जिन्होंने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत मेडिकल काउंसलिंग कमेटी (एमसीसी) की ओर से जारी 29 जुलाई की केंद्रीय अधिसूचना को कानून में गड़बड़ी और मनमाना बताया है।

वरिष्ठ अधिवक्ताओं अरविंद दातार और विकास सिंह की दलीलों में कहा गया है कि नई आरक्षण नीति के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1992 के इंद्रा साहनी के ऐतिहासिक फैसले में तय की गई 50 फीसदी की सीमा से अधिक हो जाएगा। बाद में सुप्रीम कोर्ट के बाद के फैसलों में 50 प्रतिशत की सीमा को बरकरार रखा गया था। तब सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा राज्य में प्रवेश और नौकरियों में मराठा कोटा शुरू करने के फैसले को खारिज कर दिया था।

नई आरक्षण नीति के अंतर्गत 27 फीसदी ओबीसी कोटा और 10 फीसदी ईडब्लूएस कोटा एमबीबीएस/बीडीएस के ऑल इंडिया कोटा में 15 फीसदी अप्लाई होगा। जबिक एमडी/एमएस/एमडीएस कोर्सेज के ऑल इंडिया कोटा सीट में यह 50 फीसदी अप्लाई होगा।

याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वर्तमान शैक्षणिक वर्ष के लिए (29 जुलाई का) नोटिस उन लाखों छात्रों के भविष्य को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाएगा, जिन्हें उक्त आरक्षण नीति की जानकारी नहीं थी। जबकि उन्होंने इस साल फरवरी में परीक्षा के लिए पंजीकरण कराया था। बता दें कि पीजी मेडिकल-डेंटल कोर्स के लिए कॉमन एंट्रेंस 11 सितंबर को होना है।

जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़, विक्रम नाथ और हेमा कोहली की पीठ ने महसूस किया कि इस मामले पर विचार करने की आवश्यकता है और एमसीसी, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड को नोटिस जारी कर दो सप्ताह के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया है।

बता दें कि पहले से ही एआईक्यू सीटों के तहत अनुसूचित जाति (15 प्रतिशत) और अनुसूचित जनजाति (7.5 प्रतिशत) के लिए आरक्षण है। ओबीसी कोटा (नॉन-क्रीमी लेयर) और ईडब्ल्यूएस कोटा के साथ, कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक हो जाएगा और 64.5 (विकलांग व्यक्तियों के लिए 5 प्रतिशत आरक्षण सहित) को छू जाएगा।

याचिका में कहा गया है कि सरकार का फैसला स्पष्ट रूप से मनमाना है क्योंकि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (गैर-भेदभाव), 16 (सार्वजनिक रोजगार में अवसर की समानता) और 21 (जीवन का अधिकार) का पूर्ण उल्लंघन है और यह 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को भी दरकिनार करता है।

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